अल्मोड़ा के नोबेल पुरस्कार विजेता ने अठन्नी देकर हुसैन को मच्छरों से क्यों कटवाया था?

मलेरिया एक ऐसी बीमारी है जो कि मच्छरो के काटने से होती है, इसकी वजह से इंसान की मौत भी हो सकती है। 2015 में मलेरिया से लगभग 4.5 लाख लोगों के मरने की पुष्टि की गई थी ,अब आप सोच सकते है कि मच्छरों से कितनी ख़तरनाक बीमारी हो सकती है।क्या आपको पता है मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी मलेरिया के बारे में पता करने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता रोनाल्ड रोज़ थे,जोकि उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के अल्मोड़ा में पैदा हुए थे।रोनाल्ड ने मलेरिया की रिसर्च के लिए एक आदमी को मच्छरों से बाकायदा पैसे देकर कटवाया था।जी हाँ ये सुनने में अजीब लग सकता है लेकिन ये सच है।रोनाल्ड के मलेरिया रिसर्च के बारे में कुछ बाते आज हम आपको बताते है।

रोनाल्ड के पिता इंडियन आर्मी में जनरल हुआ करते थे, रोनाल्ड जब 8 साल के थे, तब उन्हें उनके पिता ने इंग्लैंड भेज दिया,रोनाल्ड के पिता को अपने बेटे को डॉक्टर बनाना था पर रोनाल्ड लिटरेचर और मैथ्स पढ़ना चाहते थे,लेकिन पिता की मर्ज़ी के आगे उनकी एक ना चली और मेडिसिन की पढ़ाई में दिन रात लग गए। 1881 में मेडिकल कोर्स करके रोनाल्ड जब भारत वापस आकर बेंगलोर में हैजे की जांच करने का काम करने लगे, मलेरिया के केस ना के बराबर होने के चलते उस वक्त तो रोनाल्ड मलेरिया पर रिसर्च नहीं कर सके, लेकिन कुछ समय बाद जब रोनाल्ड ऊटी हिल स्टेशन गए तब सिगुर घाट पर उन्होंने एक अजीब पंखों वाला मच्छर दीवार पर बैठा देखा,रोनाल्ड के दिमाग मे उस मच्छर को लेकर तरह तरह की बाते सूझने लगी ही थी कि उन्हें ही मलेरिया हो गया,जिसकी वजह से 2 साल और मलेरिया की जांच में अड़ंगा लग गया।

1897 में रोनाल्ड ने दोबारा अपनी रिसर्च पर काम करना शुरू किया जिसके लिए उन्होंने बाकायदा हुसैन नाम के आदमी को अठन्नी देकर काम पर रख लिया,अपनी रिसर्च के लिये उन्होने 20 मच्छरों को एक साथ रखा और हुसैन को इन मच्छरों से कटवाया,हुसैन का खून चूसने के बाद रोनाल्ड ने ग़ौर किया कि मच्छरों के पेट से अलग से एक सेल निकली हुई थी,जबकि वो वास्तव में सेल नही थी,तब उन्हें ऊटी में देखे अजीब पंखों वाले मच्छर का ध्यान आया ,काफी रिसर्च करने के बाद रोनाल्ड ने पता लगा ही लिया कि अजीब पंख नही बल्कि मलेरिया फैलाने वाले पैरासाइट थे।

रोनाल्ड की ये खोज उसी साल ब्रिटिश जनरल ने पब्लिश की थी।ठीक एक साल बाद रोनाल्ड ने अपनी रिसर्च से ये पता लगा लिया था कि मलेरिया वाले पैरासाइट मच्छरों की आंतो में ही है,जिनमे से ज़्यादातर अनोफेल्स नाम के पैरासाइट हैं। ये पैरासाइट इंसान के खून में मिल जाते है और खून से होकर लीवर तक जा पहुंचते है,वहाँ जाकर ये पैरासाइट  रिप्रोडक्शन का काम करने लगते हैं,जिसकी वजह से इंसान को सिर दर्द, उल्टी,और बुख़ार होने लगता है,कई बार मलेरिया की वजह से इंसान कोमा में भी चला जाता है और कई बार मलेरिया की वजह से मौत भी हो जाती है।

12 साल बाद रोनाल्ड ने मॉरिशस में मलेरिया और मलेरिया रोकने पर साइंटिफिक रिपोर्ट पेश की जो बाद में रॉयल सोसाइटी के द्वारा पब्लिश भी की गई थी।रोनाल्ड अपने मेडिकल के क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए ट्रॉपिकल मेडिसिन सोसाइटी के प्रेसिडेंट बने जिसके बाद उन्होंने पूरी दुनिया मे मलेरिया के बारे में जानकारी दी।पहले विश्व युद्ध से प्रभावित देशो में मलेरिया को खत्म करने की खूब सारी स्कीमें चलाई। भारत के उत्तराखंडी सपूत को 1902 में मलेरिया बीमारी के मच्छर को खोजने,मलेरिया के कारण और उस पर अतिउत्तम तरीके से लिखने पर नोबेल पुरस्कार दिया गया गया । मेडिकल साइंस के इस जीनियस का 1932 में निधन हो गया।