अजब गजब: निर्वाचन अधिकारी और पुलिस को नहीं पता आदर्श आचार संहिता के नियम! निकाला तुगलकी फरमान, अब जवाब देते नहीं बन पा रहा

निकाय चुनाव का बिगुल बज चुका है और प्रदेश में आदर्श आचार संहिता लागू है, लेकिन जनता के वोट डालने से पहले ही नैनीताल के निर्वाचन अधिकारी और पुलिस आदर्श आचार संहिता के नियमों के विरुद्ध सोशल मीडिया पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है।
मामले के अनुसार नैनीताल में प्रत्याशियों को टिकट मिलने के बाद सोशल मीडिया में एक ओपिनियन पोल को लेकर खासा बवाल हो गया, जिसमें दो दिन के लिए हल्द्वानी ऑनलाइन फेसबुक ग्रुप में एक प्री पोल करवाया गया था, जिसमें नैनीताल नगर पालिका के प्रत्याशियों के जमीनी स्तर पर काम करने को लेकर सवाल पूछा गया था। जिसके बाद पुलिस ने हल्द्वानी ऑनलाइन ग्रुप के एडमिन को आपत्ति जताते हुए कानूनी कार्रवाई करने की बात कही। हैरानी की बात ये है कि हिंदुस्तान समाचार पत्र ने ओपिनियन पोल को एक्जिट पोल बताते हुए प्रमुखता से समाचार प्रकाशित किया। जिसके बाद अमर उजाला, शाह टाइम्स और कुछ वेब पोर्टलों ने भी ख़बर लगाकर सोशल मीडिया में जनता के बीच भय का माहौल पैदा कर दिया।
आवाज इंडिया ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सीओ प्रमोद शाह से दूरभाष पर बात की, तो उन्होंने बताया कि उन्हें आदर्श आचार संहिता के नियमों की जानकारी नहीं है। उन्होंने निर्वाचन कार्यालय के निर्देश पर फेसबुक पेज के एडमिन को चेताया था, जिसके बाद हमने निर्वाचन अधिकारी वरुणा अग्रवाल से जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने बताया कि निर्वाचन कार्यालय में आई शिकायत के आधार पर कार्यवाही करने के निर्देश दिए थे, लेकिन वो ये नहीं बता पाईं कि कार्यवाही एमसीसी के किस नियम के तहत की गई और शिकायतकर्ता कौन थे?
हवा में की गई कार्रवाई पर जब हमें कोई सही जवाब नहीं मिला तो हमने कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत से संपर्क किया, जिस पर उन्होंने बताया कि आदर्श आचार संहिता का मामला निर्वाचन अधिकारी के अधिकार क्षेत्र का है जिसमें पुलिस का कोई दखल नहीं बनता है। साथ ही उन्होंने कहा कि वोट डालने के समय से 48 घंटे पहले का पीरियड ही ओपिनियन पोल, विज्ञापन प्रचार और प्रसार के लिए निषिद्ध होता है।
निर्वाचन अधिकारियों और पुलिस आदि के बयानों से पता चलता है कि आदर्श आचार संहिता लागू तो जरूर हो गई है, लेकिन जिन अधिकारियों पर चुनाव को निष्पक्ष, पारदर्शी करवाने की जिम्मेदारी है उन्हें खुद ही नहीं पता कि एमसीसी के क्या नियम हैं? दूसरी तरफ ऐसे पत्रकार मौजूद हैं जिन्हें पुलिस और अधिकारियों के बयान अंतिम सत्य लगते हैं और कुछ तो ऐसे पत्रकार हैं जिनका चैनल खुद ही ओपिनियन पोल करवाता है और वो अपने वेब पोर्टल में वोटिंग से 48 घंटे पहले सोशल मीडिया में करवाए गए ओपिनियन पोल को एमसीसी का उल्लंघन बताते हुए ख़बर लगाते हैं।
आपको बता दें कि चुनाव से 48 घंटे पहले, जिसे मौन अवधि या चुनाव-पूर्व मौन के रूप में जाना जाता है, वह समय होता है जब सभी अभियान-संबंधी या चुनाव-संबंधी गतिविधियाँ रोक दी जाती हैं और नागरिकों, पत्रकारों, राजनेताओं आदि जैसे व्यक्तियों सहित किसी को भी ऐसी किसी भी गतिविधि में भाग लेने की अनुमति नहीं होती है। ऐसा मतदाताओं को अभियानों से प्रभावित होने से एक शांतिपूर्ण विराम देने के लिए किया जाता है ताकि वे मतदान करते समय सोच-समझकर निर्णय ले सकें। मौन अवधि से पहले ओपिनियन पोल की जा सकती है।
केंद्र सरकार ने साल 2022 में लोकसभा को बताया था कि चुनाव से पहले सर्वेक्षणों यानि ओपिनियन पोल पर पाबंदी का कोई प्रस्ताव नहीं है। दरअसल, चुनावों की घोषणा के बाद ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध लगाने की मांग कई वर्ग करते आ रहे हैं। इसे लेकर सरकार से सवाल पूछा गया था कि उसका जवाब लिखित तौर पर दिया गया।
सवाल था कि क्या सरकार चुनाव की घोषणा होने और आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद ओपिनियन पोल व एक्जिट पोल पर रोक लगाने पर विचार कर रही है? इस प्रश्न के लिखित उत्तर में कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, 'ओपिनियन पोल पर पाबंदी के संबंध में ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।'
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (आरपी एक्ट) की धारा 126, 126 ए और 135 सी के तहत, चुनाव से संबंधित सभी गतिविधियाँ, जो चुनाव के परिणामों को प्रभावित करने या प्रभावित करने के लिए अभिप्रेत या संभावित हैं, जैसे सार्वजनिक बैठकें आयोजित करना, भाषण देना आदि मौन अवधि के दौरान निषिद्ध हैं। इनमें से अधिकांश को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा अधिसूचनाओं के माध्यम से लागू किया जाता है।
जनमत सर्वेक्षण और एक्जिट पोल
किसी भी जनमत सर्वेक्षण, एक्जिट पोल या किसी अन्य मतदान सर्वेक्षण के परिणाम सहित किसी भी चुनावी मामले को चुनाव के प्रत्येक चरण में मौन अवधि यानी मतदान दिवस के 48 घंटे पहले के पीरियड में किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रकाशित करने की अनुमति नहीं है। विशेष रूप से एग्जिट पोल के संबंध में, मतदान के लिए निर्धारित समय और मतदान समाप्त होने के आधे घंटे बाद तक किसी को भी एग्जिट पोल करने या प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या किसी अन्य तरीके से इसके परिणामों को प्रसारित करने की अनुमति नहीं है। टेलीविजन, रेडियो, केबल या एफएम चैनल जो एग्जिट पोल करते हैं, उन्हें दो साल तक की कैद और/या जुर्माने की सजा दी जाएगी।