रामनवमी आज! मर्यादा, न्याय और धर्म की विजय का पर्व, सुख, शांति एवं न्याय का राज्य ‘रामराज्य’

 Ram Navami today! Festival of victory of dignity, justice and religion, kingdom of happiness, peace and justice 'Ram Rajya'

आज देशभर में रामनवमी का पर्व आस्था और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है।  वहीं आज नवमी पर घर-घर में कन्या पूजन हो रहा है। इस दौरान मंदिरों में आस्था का सैलाब उमड़ा है और हर तरफ आराध्यों के जयकारे गूंज रहे हैं। रामनवमी की बात करें तो धार्मिक मान्यता के अनुसार चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राम नवमी का पर्व मनाया जाता है। 

मान्यता है कि त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या के महाराजा दशरथ की पटरानी महारानी कौशल्या ने मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम को जन्म दिया था। श्रीराम का चरित्र बेहद उदार प्रवृत्ति का था। उन्होंने उस अहिल्या का भी उद्धार किया, जिसे उसके पति ने देवराज इन्द्र द्वारा छलपूर्वक उसका शीलभंग किए जाने के कारण पतित घोषित कर पत्थर की मूर्त बना दिया था। जिस अहिल्या को निर्दोष मानकर किसी ने नहीं अपनाया, उसे भगवान श्रीराम ने अपनी छत्रछाया प्रदान की। लोगों को गंगा नदी पार कराने वाले एक मामूली से नाविक केवट की अपने प्रति अपार श्रद्धा व भक्ति से प्रभावित होकर भगवान श्रीराम ने उसे अपने छोटे भाई का दर्जा दिया और उसे मोक्ष प्रदान किया। अपनी परम भक्त शबरी नामक भीलनी के झूठे बेर खाकर शबरी का कल्याण किया।

महारानी केकैयी ने महाराजा दशरथ से जब राम को 14 वर्ष का वनवास दिए जाने और अपने लाड़ले पुत्र भरत को राम की जगह राजगद्दी सौंपने का वचन मांगा तो दशरथ गंभीर धर्मसंकट में फंस गए थे। वह बिना किसी कारण राम को 14 वर्ष के लिए वनों में भटकने के लिए भला कैसे कह सकते थे और श्रीराम में तो वैसे भी उनके प्राण बसते थे। दूसरी ओर वचन का पालन करना रघुकुल की मर्यादा थी। ऐसे में जब श्रीराम को माता केकैयी द्वारा यह वचन मांगने और अपने पिता महाराज दशरथ के इस धर्मसंकट में फंसे होने का पता चला तो उन्होंने खुशी-खुशी उनकी यह कठोर आज्ञा भी सहज भाव से शिरोधार्य की और उसी समय 14 वर्ष का वनवास भोगने तथा छोटे भाई भरत को राजगद्दी सौंपने की तैयारी कर ली। श्रीराम द्वारा लाख मना किए जाने पर भी उनकी पत्नी सीता जी और अनुज लक्ष्मण भी उनके साथ वनों में निकल पड़े। वनवास की यात्रा की शुरूआत श्रृंगवेरपुर नामक स्थान से प्रारंभ कर वहां से वे भारद्वाज मुनि के आश्रम में चित्रकूट पहुंचे। उसके बाद विभिन्न स्थानों की यात्रा के दौरान पंचवटी में उन्होंने अपनी कुटिया बनाने का निश्चय किया। यहीं पर रावण की बहन शूर्पणखां की नाक काटे जाने की घटना हुई। उसी घटना के कारण वहां खर-षण सहित 14000 राक्षस राम-लक्ष्मण के हाथों मारे गए। यहीं से श्रीराम व लक्ष्मण की अनुपस्थिति में लंका का राजा रावण माता सीता का अपहरण कर उन्हें अपने साथ लंका ले गया।

कहा जाता है कि जब सीता का विरह श्रीराम से नहीं सहा गया तो उन्होंने साधारण मनुष्य की भांति विलाप किया लेकिन हिम्मत न हारते हुए सीता जी की खोज में राम-लक्ष्मण जंगलों में भटकने लगे। इसी दौरान उनकी भेंट श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमान से हुई, जिन्होंने राम-लक्ष्मण को वानरराज बाली के छोटे भाई सुग्रीव से मिलाया, जो उस समय बाली के भय से यहां-वहां छिपता फिर रहा था। श्रीराम ने बाली का वध करके सुग्रीव तथा बाली के पुत्र अंगद को किष्किंधा का शासन सौंपा और उसके बाद सुग्रीव की वानरसेना के नेतृत्व में लंका पर आक्रमण कर देवताओं पर भी विजय पाने वाले महाप्रतापी, महाबली, महापंडित तथा भगवान शिव के घोर उपासक लंका नरेश राक्षसराज रावण का वध कर सीता को उसके बंधन से मुक्त कराया और लंका पर खुद अपना अधिकार न जमाकर लंका का शासन रावण के छोटे भाई विभीषण को सौंप दिया तथा वनवास की अवधि समाप्त होने पर भैया लक्ष्मण, सीता जी व हनुमान सहित अयोध्या लौट आए।

वास्तव में विधि के विधान के अनुसार राम को दुष्ट राक्षसों का विनाश करने के लिए ही वनवास मिला था। उन्होंने अपने मानव अवतार में न तो भगवान श्रीकृष्ण की भांति रासलीलाएं खेली और न ही कदम-कदम पर चमत्कारों का प्रदर्शन किया बल्कि उन्होंने सृष्टि के समक्ष अपने क्रियाकलापों के जरिये ऐसा अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसकी वजह से उन्हें ‘मर्यादा पुरूषोत्तम’ कहा गया। जहां तक राम-रावण के बीच हुए भीषण युद्ध की बात है तो वह सिर्फ दो राजाओं के बीच का सामान्य युद्ध नहीं था बल्कि दो विचारधाराओं का संघर्ष था, जिसमें एक मानव संस्कृति थी तो दूसरी राक्षसी संस्कृति। एक ओर क्षमादान की भावना को महत्व देने वाले व जनता के दुख-दर्द को समझने एवं बांटने वाले वीतरागी भाव थे तो दूसरी ओर दूसरों का सब कुछ हड़प लेने की राक्षसी प्रवृत्ति। रावण अन्याय, अत्याचार व अनाचार का प्रतीक था तो श्रीराम सत्य, न्याय एवं सदाचार के। यही नहीं, सीता जी के अपहरण के बाद भी श्रीराम ने अपनी मर्यादाओं को कभी तिलांजलि नहीं दी। उन्होंने इसके बाद भी रावण को एक महाज्ञानी के रूप में सदैव सम्मान दिया और यह इससे साबित भी हुआ कि रावण की मृत्यु से कुछ ही क्षण पूर्व श्रीराम ने लक्ष्मण को रावण के पास ज्ञान अर्जन के लिए भेजा था। मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम में सभी के प्रति प्रेम की अगाध भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनकी प्रजा वात्सल्यता, न्यायप्रियता और सत्यता के कारण ही उनके शासन को आज भी ‘आदर्श’ शासन की संज्ञा दी जाती है और आज भी अच्छे शासन को ‘रामराज्य’ कहकर परिभाषित किया जाता है। ‘रामराज्य’ यानी सुख, शांति एवं न्याय का राज्य।