नैनीताल:कुमाऊं के राजुला मालूशाही की अमर प्रेम कथा को युगमंच नाट्य संस्था ने ऐसे किया प्रस्तुत कि दर्शक पल भर भी नज़र न हटा सके,

Nainital: Yugmanch Natya Sanstha presented the immortal love story of Rajula Malushahi of Kumaon in such a way that the audience could not lose sight even for a moment,

उत्तराखंड की अमर प्रेम कहानियों में से एक राजुला मालूशाही की प्रेम कथा भी बेहद प्रचलित है। आपने रोमियो जूलियट,हीर रांझा,लैला मंजनू, ये सब प्रेम कहानियां बहुत सुनी होंगी। कुछ ऐसी ही कहानी है राजुला और मालूशाही की। जिसका मंचन नैनीताल में पहली बार युगमंच नाट्य संस्था के द्वारा नैनीताल क्लब के शैले हॉल में किया गया। राजुला मालूशाही का रूपांतरण डॉ हरीश सुमन द्वारा लिखित ख़्वाब एक उड़ता परिंदा से किया गया है इसका निर्देशन ज़हूर आलम और संगीतबद्ध नवीन बेगाना ने किया है।


राजुला मालूशाही की प्राचीनता का कुमाऊं मंडल के बागेश्वर में लगने वाले उत्तरायणी मेले के दौरान पता चलता है। लोकगाथा के अनुसार कत्यूरो की राजधानी बैराठ(चौखुटिया)हुआ करती थी। तब बैराठ में राजा दुलाशाह थे,उनकी कोई संतान नही थी,जगह जगह मन्नते मांगने के बाद भी संतान का सुख नही मिला तो उन्होंने बागेश्वर आकर बागनाथ के मंदिर में शिव आराधना की। इसी बीच उनकी मुलाकात भोट के एक व्यापारी सुनपत शौका से हुई। वो भी निसंतान थे और मन्नत मांगने मंदिर पहुंचे थे। दोनों में समझौता हुआ कि जब भी उनकी संतान होगी तो उनकी संतानों की वो आपस मे शादी करवाएंगे।


बागनाथ की कृपा हुई और दोनों को संतान की प्राप्ति हुई। बैराठ के राजा को पुत्र रत्न और व्यापारी सुनपत को पुत्री की प्राप्ति हुई। राजा के पुत्र का नाम मालूशाही और व्यापारी की पुत्री का नाम राजुला रखा गया। वादे के अनुसार बचपन मे ही दोनों का विवाह कर दिया गया लेकिन कुछ समय पश्चात राजा का निधन हो गया,दरबारियों ने रानी को खूब भड़काया कि राजुला राजा को खा गयी,ये अपशकुनी है। इस कारण राजुला को इसका दोषी मानकर राजुला और मालूशाही को हमेशा के लिए दूर कर दिया गया। दोनों को पता भी नही था कि उनकी शादी भी हो चुकी है। दोनों अलग अलग स्थानों में एक दूसरे के स्वप्न देखते हुए बड़े हुए। युगमंच द्वारा प्रस्तुत इस नाट्य कृति में इसी इतिहास को दिखाया गया है कि किस प्रकार एक राजा अपना राज पाट त्याग कर शौका समाज की सामान्य लेकिन बेहद खूबसूरत कन्या के लिए जोगी बनकर जंगलों में भटके। उन्हें राजुला के पिता द्वारा ज़हर तक दिया गया लेकिन आखिर में मालूशाही अपने प्रेम को पाने में सफल हो गए।

15वी शताब्दी की इस प्रेम कथा को राजुला मालूशाही नाट्य रूपांतरण के माध्यम से युगमंच द्वारा प्रस्तुत किया गया।


इस नाटक में मालूशाही की भूमिका रोहित वर्मा,राजुला की भूमिका कल्याणी गंगोला ने निभाई और अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया। वहीं दुलाशाही राजा की भूमिका भास्कर बिष्ट,शौका व्यापारी सुनपति की भूमिका डीके शर्मा,रानी धर्मा के किरदार को खुशी सहदेव,राजुला की माँ के किरदार में अदिति खुराना,विक्की पाल की भूमिका रोहित सनवाल, मंत्री की भूमिका विकास भट्ट,नरहरि सचदेव के किरदार में अमित शाह, गुरु गोरखनाथ के रूप में नीरज डालाकोटी, सिदुआ बिदुआ के रूप में पवन कुमार और कौशल शाह,अनुचर के रूप में मनोज कुमार ने अपने किरदारों में जान डाल दी। इनका सहयोग आयुषी,विश्वेश गंगोला और ऋचा सनवाल ने किया। 


नाट्य कृति के उद्घोषक हेमंत बिष्ट ने किया। इनके अलावा वीडियोग्राफी सुनील बोरा,दीपक कुमार,ने की। नाट्य कृति को सफल बनाने में, प्रदीप पांडे,राजा साह,रवि जोशी,रवि नेगी,भुवन चंद्रा, सिद्धांत,संगीता, कामाक्षी,अशोक कंसल,रफ्त आलम,हिमांशु पांडे,संजय आर्या का योगदान रहा। इस मौके पर इदरीस मलिक,मिथिलेश पांडे,के साथ कई रंगमंच कलाकार मौजूद रहे।