निकाय चुनावः रुद्रपुर के वार्ड में 3 में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए आसान नहीं राह! जानिए पार्षद प्रत्याशियों की कुंडली 

Municipal elections: It is not easy for both BJP and Congress in 3 wards of Rudrapur! Know the horoscope of councilor candidates

रुद्रपुर। उत्तराखण्ड में निकाय चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे प्रत्याशियों के दिलों की धड़कनें भी तेज होती जा रही है। इस बीच भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दलों से जुड़े प्रत्याशी जोर-शोर के साथ मैदान में उतरते हुए प्रचाय अभियान में जुटे हुए हैं। रुद्रपुर की बात करें तो यहां मेयर सीट के साथ ही पार्षदी का चुनाव भी बेहद दिलचस्प होता जा रहा है। यहां नगर निगम क्षेत्र के 40 वार्डों में कई प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरे हैं और घर-घर जाकर मतदाताओं के रिझाने में लगे हैं, लेकिन कई जगहों पर वार्ड के लोग अपने पार्षद प्रत्याशी से पूरी तरीके से परिचित ही नहीं हैं। आज हम बात रुद्रपुर नगर निगम क्षेत्र के वार्ड नंबर 3 की कर रहे हैं। 

भाजपा प्रत्याशी- विधान राय 
शैक्षिक योग्यता- इंटर 
व्यवसाय-व्यापार 

विधान राय बंगाली समाज से ताल्लुक रखते हैं और ट्रांजिट कैंप रुद्रपुर के स्थानीय निवासी हैं। क्षेत्र में उनकी छवि लोकप्रिय नेता के रूप में है और बेहद शांतप्रिय माने जाते हैं। हांलाकि विधान के परिवार की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है, लेकिन उनके बड़े भाई समाजसेवा से जुड़े रहते हैं और बहुत ही शांत स्वभाव के हैं। वैसे विधान राय लंबे समय से भाजपा से जुड़े हैं और सामाजिक व धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर प्रतिभाग करते हैं।


विधान राय मबजूत पक्षः
विधान राय एक बार नगर निगम के पार्षद बन चुके हैं और उनके पास कार्य करने का लंबा अनुभव है। अपने 5 साल के कार्यकाल में मेयर के साथ मिलकर उन्होंने कई उल्लेखनीय कार्य वार्ड के लिए करवाए हैं। शांत और सौम्य व्यवहार के चलते आसानी से विधान राय लोगों के दिल में जगह बना लेते हैं। विधान राय के पास युवा टीम है जो इस चुनाव में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर वक्त उनके साथ खड़ी है। विधान राय की बस्तियों में भी अच्छी पकड़ मानी जाती है। विधान राय के साथ दर्जा मंत्री और कई भाजपाइयों का साथ भी है जो उन्हें खुलकर चुनाव लड़ा रहे हैं। और वार्ड में उनके काफी रिश्तेदार भी वोटर है। कुल मिलाकर इस चुनाव में भाजपा के कई बड़े चेहरों का इम्तिहान है, जिसका परिणाम मतदान के बाद आयेगा। 

विधान राय कमजोर पक्षः
पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद विधान राय को कई जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है। आसानी से उपलब्ध न होना और जनता का फोन ना उठाना उनका कमजोर पक्ष रहा है जो परेशानी का सबक बन सकता है। खबरों की मानें तो विधान राय चुनाव लड़ने के मूड में नहीं थे, लेकिन दो दावेदारों की लड़ाई में उनको टिकट दे दिया गया है। पिछले चुनाव की तरह विधान राय के साथ इस बार कई बड़े चेहरे नदारत दिखाई दे रहे हैं। वहीं अंदर खाने भी बगावत के सुर उठते दिख रहे हैं, जो कहीं ना कहीं उनकी परेशानी बड़ा सकते हैं। 

कांग्रेस प्रत्याशी- शुभम दास 
शैक्षिक योग्यता- स्नातकोत्तर 
व्यवसाय-नौकरी(जॉब) 

वहीं अगर बात कांग्रेस प्रत्याशी की करें तो कांग्रेस की तरफ से इस सीट पर शुभम दास को मैदान में उतारा गया है। शुभम दास भी बंगाली समाज से ताल्लुक रखते हैं और इनका परिवार यहां का स्थानीय निवासी हैं। हालांकि शुभम दास के भी परिवार की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है, लेकिन शुभम दास लंबे समय से सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर अपनी भागीदारी निभाते आए हैं। शुभम दास के पास छात्र चुनाव लड़ने का भी अनुभव है। इस चुनाव में वह एक युवा चेहरा बनकर रण में कूदे हैं। शुभम दास का परिवार और शुभम दास पहले से ही कांग्रेस समर्पित रहे हैं। 


शुभम दास मजबूत पक्षः शुभम दास के पास उन्हीं की तरह बेहद ही युवा टीम है जो उन्हें चुनाव लड़ा रही है और उन्हें युवा वर्ग का भरपूर समर्थन मिलता दिखाई दे रहा है। शुभम दास स्वच्छ छवि के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे हैं और युवाओं के साथ ही यहां की जनता का उन्हें भरपूर सहयोग मिलता दिख रहा है।  

शुभम दास कमजोर पक्षः शुभम दास के कमजोर पक्ष की बात करें तो राजनीति में उनकी सक्रियता बेहद कम दिखाई देती है। यही नहीं सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन में कई बार उनपर गंभीर आरोप भी लगे हैं। इतना ही नहीं छात्र राजनीति और छात्र चुनाव के दौरान उन पर पैसे लेकर बैठने के आरोप लगे थे। देखा जाए तो क्षेत्र की जनता के बीच भी उनकी पकड़ कमजोर है,और तो और शुभम अपना वोट भी खुद को नहीं डाल सकते है और उनको चुनाव लडने वाले भी कुछ लोग उस वार्ड के निवासी भी नहीं हैं। ऐसे में उन्हें खासा पसीना बहाना पड़ सकता है। 

ऐसे में वार्ड तीन से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के पार्षद प्रत्यशियों की चुनावी नैया सीधे-सीधे पार होना आसान नहीं है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसपर भरोसा जताती है।