हल्द्वानी: जात न बदली, विचार न बदले, न बदला भेदभाव, फिर कैसे बदल गया ये साल? कुमाऊं यूनिवर्सिटी की छात्रा को उसकी जाति की वजह से मकान मालिक ने नहीं दिया किराए पर कमरा, छात्रा हुई आहत

हल्द्वानी। आज नए साल का पहला दिन है, लेकिन बदला कुछ नही। भारत में जाति प्रथा की शुरुआत आज से लगभग दो हजार साल पहले हुई थी जो आज भी कायम है। हर साल केवल कैलेंडर की तारीख बदलती है एक नया साल शुरू होता है लेकिन जातिवाद आज भी नहीं बदल पाया, हालांकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15A के अंतर्गत जाति धर्म लिंग और जन्म स्थान के आधार पर किसी भी भारतीय के साथ भेदभाव करना एक अपराध है लेकिन आज भी ये अपराध किया जा रहा है।
ताजा मामला नैनीताल जिले के हल्द्वानी का है जहां कुमाऊं यूनिवर्सिटी की एक छात्रा हल्द्वानी में इंटर्नशिप कर रही है, फिलहाल छात्रा अपने एक रिश्तेदार के घर ठहरी हुई है, बीते दिनों छात्रा हल्द्वानी में समाचार पत्र अमर उजाला के कार्यालय के समीप कमरा देखने गई, मकान मालिक ने छात्रा से उसका पूरा नाम पूछा, छात्रा ने जैसे ही अपना पूरा नाम मकान मालिक को बताया उसने छात्रा के मुंह पर ही बोल दिया कि हम SC ST को कमरा किराए पर नहीं देते। ये सुनकर छात्रा दंग रह गई और मकान मालिक को खरी खोटी सुनाकर वहां से चली गई। इसके बाद छात्रा ने कुछ और जगह कमरे की तलाश की लेकिन ज्यादातर लोगो ने छात्रा की जाति की वजह से कमरा देने से मना कर दिया।
छात्रा ने आरोप लगाया कि हल्द्वानी में ज्यादातर लोग जाति पूछकर ही कमरा किराए पर दे रहे हैं। हैरानी की बात ये है कि हल्द्वानी में हर धर्म के लोग रहते है इतना भेदभाव किसी दूसरी जाति के लोगो के साथ नही किया जाता जितना भेदभाव SC ST वर्ग के लोगो के साथ किया जा रहा है। छात्रा ने बताया कि वो नैनीताल के पंगोट गांव की निवासी है और कुमाऊं यूनिवर्सिटी के डीएसबी कॉलेज की छात्रा है,कुछ दिन पहले वो इटरनशिप करने हल्द्वानी आई थी, और अपने रिश्तेदार के घर ठहरी हुई थी, काफी दिनों से छात्रा एक कमरा ढूंढ रही थी लेकिन उसकी जाति की वजह से उसे कमरा मिलने में खासी दिक्कतें आ रही है जिससे छात्रा बुरी तरह आहत है।
बता दें कि जाति प्रथा न केवल हमारे बीच वैमनस्यता को बढ़ाती है बल्कि ये हमारी एकता में भी दरार पैदा करने का काम करती है। जाति प्रथा प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में बचपन से ही ऊंच-नीच, उत्कृष्टता निकृष्टता के बीज बो देती है।जाति ईंटों की दीवार या कांटेदार तारों की लाइन जैसी कोई भौतिक वस्तु नहीं है जो हिन्दुओं को मेल मिलाप से रोकती हो और जिसे तोड़ृना आवश्यक हो। जाति एक धारणा है और यह एक विक्षिप्त मानसिक स्थिति है।
बुद्ध, नानक, कबीर, अंबेडकर आदि ने तो अपने-अपने काल मे जातिवाद को दूर करने के लिए पूरा प्रयास किया लेकिन आज भी जातिवाद हर जगह मौजूद है, अब फिर से जरूरत है ईमानदार प्रबुद्धों की जो इस समस्या को राष्ट्र के राजनीतिक और सामाजिक पटल पर रखकर इसके सामाधानों पर चर्चा करें। अगर सचमुच हम समानता का जातिविहीन समाज बनाना चाहते हैं तो एक नेशनल नैरेटिव के साथ सामाजिक न्याय का एक रैशनल प्रारूप बनाना होगा। इसके लिए विवाद कम विचार ज्यादा करने की जरूरत है।