बागेश्वरः 6500 फीट की ऊंचाई पर मोर! जलवायु परिवर्तन की चिंताएं बढ़ीं, विशेषज्ञों ने भी चेताया

बागेश्वर। उत्तराखंड के हिमालयी रीजन में मोर के देखे जाने की घटना ने पर्यावरण विज्ञानियों को चौंका कर रख दिया है। आखिर 6500 फीट की ऊंचाई पर मोर कैसे पहुंचा और वह वहां के जलवायु में सर्वाइव कैसे कर पाया? ये सवाल खड़े हो रहे हैं। कुछ पर्यावरण विज्ञानी इसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार मान रहे हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं हिमालय क्षेत्र से एक आश्चर्यजनक दृश्य सामने आया है। बागेश्वर के पहाड़ी क्षेत्र में एक मोर को देखा गया है। इससे वन्यजीव विशेषज्ञ हैरान रह गए। आमतौर पर निचले जंगलों और गर्म मैदानों में पाए जाने वाले मोर इतनी ऊंचाई पर शायद ही कभी देखे जाते हैं, जिससे यह नजारा बेहद असामान्य हो जाता है। वहीं इस मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि मोर आम तौर पर समुद्र तल से 1600 फीट ऊपर के क्षेत्रों में रहते हैं। हालांकि पक्षी को हाल ही में बागेश्वर के पास एक जंगल में देखा गया, जो लगभग 6500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस मामले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं कि पक्षी इतनी ऊंचाई पर क्यों गया? विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु परिवर्तन हिमालयी क्षेत्र में जैव विविधता को प्रभावित कर रहा है। बढ़ते तापमान और बदलते मौसम पैटर्न के कारण प्रजातियां अधिक ऊंचाई की ओर जा रही हैं।
वहीं स्थानीय निवासियों ने भी बागेश्वर से 30 किलोमीटर दूर 5200 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित काफलीगैर गांव में सबसे पहले मोर को देखा। पक्षी को पहली बार दो महीने पहले देखा गया था, जिससे स्थानीय लोगों में दिलचस्पी पैदा हुई। इस पर वन विभाग ने पक्षी की गतिविधियों पर नजर रखने और पक्षी की मौजूदगी के बारे में और अधिक डाटा इकट्ठा करने के लिए क्षेत्र में कैमरा ट्रैप लगाए। उधर वन्यजीव विशेषज्ञ इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या यह दुर्लभ दृश्य एक अलग घटना है? या एक बड़े पर्यावरणीय बदलाव का हिस्सा है, जिसे जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा सकता है। जानवरों के प्रवास और आवास पैटर्न में बदलाव को अक्सर व्यापक पारिस्थितिक परिवर्तनों के संकेतक के रूप में देखा जाता है। इस ऊंचाई पर मोर का दिखना एक चेतावनी संकेत हो सकता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार देहरादून में भारतीय वन्यजीव संस्थान के एक वैज्ञानिक बीएस अधिकारी ने इस दृश्य के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह निस्संदेह एक असामान्य घटना है। मोर मैदानी और जंगली इलाकों में रहने के लिए जाने जाते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति जलवायु या पर्यावरणीय परिवर्तनों का संकेत हो सकती हैं, जिसकी विस्तृत जांच की आवश्यकता है। बागेश्वर के पहाड़ी इलाकों में मोर की मौजूदगी ने सवाल खड़े किए हैं, लेकिन यह पर्यावरणीय कारकों के कारण वन्यजीवों के व्यवहार में संभावित बदलावों को भी उजागर करता है। चल रही जांच का उद्देश्य यह निर्धारित करना होगा कि क्या यह घटना व्यापक जलवायु रुझानों से जुड़ी है या यह एक अलग मामला है।
पर्यावरणविदों ने पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए तत्काल नीति-स्तरीय हस्तक्षेप का आग्रह किया है। उनकी सिफारिशों में शामिल हैं:
- कार्बन उत्सर्जन पर सख्त नियंत्रण
- वनों की कटाई को सीमित करना
- पर्यावरण के अनुकूल बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना
- जैव विविधता की निगरानी और संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करना
हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव
हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव स्पष्ट हैं। ग्लेशियरों का पीछे हटना, जल स्रोतों का सिकुड़ना, अनियमित वर्षा और फसल की पैदावार में गिरावट इसके उदाहरण हैं।