रेडिएशन का दुष्प्रभाव

आधुनिक तकनीकियों ने भले ही आज हमारी ज़िन्दगी को आसान कर दिया हो लेकिन कहीं न कहीं इन्हींतकनीकियों की वजह से हमारी ज़िन्दगी खतरे की ज़द में हैआज शायद ही कोई एसा इंसान होगा जिसके हाथों में मोबाइल ना हो ...शौक भी पूरा होता है और कई काम भी आसान होते हैं लेकिन क्या आपको मालूम है कि मोबाइल में नेटवर्क कहां से आते हैं...आईये बताते हैं आपको... मोबाइल प्रदाता टॉवर कम्पनियां नेटवर्क के लिये टॉवर लगाती हैं जो सीधे सेटलाईट के ज़रिये हमारे पास मौजूद हैंडसैट पर आते हैं और हम कहीं से भी किसी से भी फोन पर बात कर पाते हैं. क्या आपको पता है कि इन नेटवर्क से निकलने वाले विकिरण से क्या नुकसान हो सकता है तो चलिये बताते हैं आपको कि आपके हाथों मे क्या मुसीबत है...मोबाइल टॉवर औऱ हैंडसैट से निकलने वाली विकिरण यानी कि रेडिएशन से बना डेंज़र ज़ोन गर्भवती महिलाओं,5 साल तक के बच्चों और वृद्धों के लिये सबसे ज़्यादा खतरनाक होता है,क्योंकि नेटवर्क टॉवर से सटे आबादी वाले क्षेत्रों में असमय गर्भपात, बच्चों में शारीरिक व मानसिक विकार और वृद्धों में मानसिक बीमारी का खतरा कई गुना बढ़ जाता है... ज़्यादा मुनाफे के चक्कर में टॉवर रेडिएशन का खतरा लगातार बढ़ रहा है टॉवर कम्पनियां खर्चा बचाने के लिये एक ही टॉवर पर चार-चार रिसिविंग एंटीना लगवा देती है जबकि एक टॉवर पर एक रिसीविंग एंटीना में तीन फ्रीकवेंसी ही होती है इस तरह एक टॉवर पर जितने एंटीना लगे होंगे उससे निकलने वाले विकिरण की मात्रा भी उसी अनुपात में गुणात्मक तरीके से उतनी ही ज़्यादा होगी.. ये टॉवर खतरे की ज़द बन रहे हैं और सबसे बड़ी बात डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम के जो मानक तय किये है उनके अनुसार मोबाइल कम्पनियों को टॉवर एसे भवन में लगाने की अनुमति है जो आरसीसी पिलर पर बने हों लेकिन इन निर्देशों के बादवजूद भी पुराने मकानों की छत पर भी टॉवर लगवा दिये जाते हैं सबसे महत्वपूर्ण बात कि टॉवर लगाने से पहले मोबाइल ऑपरेटर टॉवर रेडिएशन के घेरे में आबादी वाले क्षेत्र ना आयें इस बात का शपतपत्र भी लिखवाया जाता है बादवजूद इसके मनमाने तरीके से टॉवरों को लगाया जा रहा है अगर जल्द ही इस पर ध्यान नही दिया गया तो टॉवर से निकलने वाले रेडियेशन का नुकसान हम सब को भुगतना पड़ेगा.