हिमालय पर मंडरा रहा बड़ा खतरा।

पहाड़ो में लगातार बढ़ रहा तापमान ग्लोबल वार्मिंग के कारणों को साफ़ दर्शा रहा है, जिसके परिणाम हिमालय और ग्लेशियरों के लिए बिल्कुल भी ठीक नही है। वहीँ हिमालय जैसे शांत  क्षेत्रों में आबादी का रुख करना और हैली सेवाओ की आवाजाही इन क्षेत्रो के लिए कितनी घातक सिद्ध हो सकती है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।

     मैदानी क्षेत्रों के बाद अब पहाड़ों का पारा भी लगातार बढ़ रहा है जो ग्लोबल वार्मिंग की चेतावनी है। ऐसे में 21वीं सदी की दुनिया लगातार गर्म होती जा रही है, ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं , और मौसम मे अनियमित परिर्वतन आ रहे हैं , विश्वभर के वैज्ञानिक इसके पीछे के कारण ब्लैक कार्बन की थ्यौरी पर काम कर रहे हैं, मौसम में आ रहे बदलाव के लिए ब्लैक कार्बन सबसे बड़ा कारक होता है, दरअसल वैज्ञानिकों का मानना है कि कार्बनेसियस एरोसोल मुख्यतः दो अवयवों आर्गेनिक कार्बन और ब्लैक कार्बन से मिलकर बनता है। ब्लैक कार्बन काफी खतरनाक है। यह एक हफ्ते तक वातावरण में उड़ता रहता है। यह मैदानी क्षेत्रों से उड़कर हिमालय में जमा हो जाता है। जब यह ग्लेशियर में जमा होता है, तो सूर्य की किरणों को बहुत तेजी से अवशोषित करता है, जिससे ग्लेशियर की ऊपरी परत गरम हो जाती है और  ग्लेशियर तेज़ी से पिघलने लगते हैं, हिमालय में ब्लैक कार्बन का आकार बढता जा रहा है, जो शहरी क्षेत्र के प्रदूषण से हिमालय तक पहुंचते पहुंचते बड़ा आकार ले रहा है, जिसके परिणाम भविष्य में काफी घातक सिद्ध हो सकते हैं ।वहीँ दिनों दिन बढ़ती जा रही वनाग्नि की घटनायें भी पहाड़ो का पारा बढ़ा रही हैं जिससे हिमालय और ग्लेशियर बड़ी तेज़ी से पिघल रहे हैं, जिस पर शोधकर्ताओ और पर्यावरणविदों ने गहरी चिंता जताई है जबकि कई क्षेत्र जहाँ बर्फबारी अधिक देखने को मिलती थी वहां सालो से बर्फ ग्लोबल वार्मिंग के चलते पड़ी ही नहीं है। हाल यही रहा तो बर्फबारी वाले क्षेत्र में ऐसा ही खामियाजा भुगत सकते हैं जिसको लेकर पर्यावरणविद तक चिंता में हैं। पर्यावरणविद और उत्तराखंड वन विभाग के ब्रांड एम्बेसडर जगत सिंह जंगली का कहना है कि जंगलो की आग पर्यावरण पर गहरा असर डाल रही है जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है

हिमलाय और गलेशियर को और अधिक प्रभावित करने वाली हैली सेवा और यहाँ अधिक आबादी का रुख करना भी हिमालय की संवेदनशील पर भारी पड़ रहा है ।जानकारों की माने तो हिमालय जैसे शांत क्षेत्रो में यात्रियों की भरमार यहाँ की भौगोलिक परस्थिति पर गहरा असर डाल रही है। पूर्व में इन क्षेत्रो के संवेदनशीलता का ख्याल रखा जाता था, लेकिन अब धार्मिक पर्यटन के चलते इन पर बिल्कुल ध्यान नही दिया जा रहा, हलचल बढ़ने से यहाँ के जीव जन्तु जहाँ पर भी प्रभाव पड़ रहा हैं।तो वहीँ हैली सेवा और लोगो के भारी संख्या में इन क्षेत्रो में पहुँचना यहाँ कम्पन्न उतपन्न कर रहा है, जिसके परिणाम 2013 की आपदा में भी सामने आये। इन सब के बावजूद भी इन शोध परिणामो पर बिलकुल भी ध्यान नही दिया जा रहा है जो एक और आपदा को न्योता दे रहे हैं, जिसे पर्यावरणविद् और पदम भूषण से नवाजे गए चंडी प्रसाद भट्ट ने भी माना है

हिमालय और गलेशयरो पर पर्यावरणविदो के साथ साथ अब सरकार और आम लोगो को गहरा मन्थन करना होगा वरना इसके दुष्परिणाम का जो की काफी घातक हैं इसका असर भविष्य में दिखेगा।