लोकसभा चुनाव में यह नाकामयाब योजना क्यों नही बना बड़ा मुद्दा

अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में हरीश रावत ने 15 दिसंबर 2016 को उत्तराखंड जन आवास योजना के तहत एफसीआई गोदाम के पास पड़े मैदान में 2000 मकान बनवाने की नींव रखी थी । लाटरी सिस्टम में से आवास का आवंटन होना था ।इस योजना के तहत दो आय वर्ग के लाभार्थी रखे गए थे , जिसमें दो फ़ीसदी कोटा महिलाओं के लिए आरक्षित रखा गया था । तीन लाख से कम आय करने वालों के लिए 30 स्क्वायर मीटर एवं छह लाख से कम आय के लिए 60 स्क्वायर मीटर के आवास बनाए जाने थे । 30 स्क्वायर मीटर के मकान की लागत लगभग साढ़े चार लाख रुपये और 60 स्क्वायर मीटर के आवास की लागत दस लाख रुपये तक आने की संभावना जताई गई थी । इसमें ढाई लाख तक रुपए की सब्सिडी देने का ऐलान भी किया गया था । साथ ही आवास में जमीन का मूल्य ना जुड़ने की बात भी कही गई थी ।आवास 4 मंजिले फ्लेट बनाने की योजना थी । तत्कालीन आवास सचिन मीनाक्षी आर सुंदरम ने बताया था यह योजना रुद्रपुर से शुरू होकर पूरे प्रदेश में लागू की जाएगी । उस वक्त भाजपा के जिला अध्यक्ष शिव अरोरा का यह बयान भी था कि आवास योजना मोदी सरकार की है जिसका श्रेय कांग्रेसी ले रहे हैं केंद्र सरकार ने इस योजना को बहुत ही पहले स्वीकृत करके प्रदेश के पास भेज दिया था । उन्होंने योजना की स्वीकृति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार भी जताया था ।
इस योजना के लिए लाभार्थी की पात्रता का चयन के लिए फार्म भरवाए गए थे । एक परिवार के एक ही व्यक्ति को आवास के लिए आवेदन करने को कहा गया था । उस वक्त लोगों की उम्मीद बंधी थी की सरकार के बदौलत उन्हें अपने सपने के घर का सुख मिल सकेगा । कांग्रेस की तत्कालीन सरकार आवास देने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रही थी की विधानसभा चुनाव हुए और प्रदेश में कमल के फूल वालों की सरकार बन गई यदि भाजपा जिला अध्यक्ष के अनुसार जन आवास योजना केंद्र सरकार की योजना थी तो प्रदेश में भाजपा की सरकार के गठन के बाद योजना के तहत 2 साल में मकान बन कर तैयार हो जाना चाहिए था । मगर ऐसा नहीं हुआ । क्या वजह रही कि केंद्र सरकार की आवास योजना को प्रदेश सरकार बनने के बाद भी ठंडे बस्ते में डाल दिया? मौके पर एक ईंट तक नही लगी । दरसल सत्ता में आने के बाद भाजपा ने इस योजना को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया । जिस कारण गरीबों के अरमान पर पानी फिर गया और उनको अपने घर को पाने का सपना चकना चूर हो गया । अब लाभार्थी को यह उम्मीद कम ही है की योजना मूर्त रूप ले पाएगी दुर्भाग्य की बात यह है कि लोकसभा चुनाव में यह नाकामयाब योजना मुद्दत तक नहीं बन पाया।