मेरे तो रहनुमा ही मेरी बर्बादी के तमाशबीन बन गए

नैनीताल आज उतना खूबसूरत नहीं दिखता,जितना कि आज से दशकों पहले हुआ करता था।नाजुक सा नैनीताल,जिसे बहुत ही ज़्यादा प्यार से सँवारा जाना चाहिए था,आज उसे यहाँ के रहनुमाओं ने कंक्रीट के जंगल में बदल कर रख दिया है।विलायती नैनीताल का हुलिया आज ही के दिन एक विनाशकारी भूस्खलन की वजह से पूरी तरह बदल गया था,इतिहास की ये तारीख़ 18 सितंबर 1880 थी।जब नैनीताल में हुए भयंकर भूस्खलन की वजह से 151लोग मौत की नींद सो गए थे,जिनमें 108 भारतीय थे और 43 यूरोपियन।भूस्खलन इतना जबरदस्त था कि नैना देवी का मंदिर,विक्टोरिया होटल,असेम्बली रूम और आसपास के कई मकान भी इसके चपेट में आ गए,हालाँकि बाद में नैंना देवी मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया।लेकिन उस भूस्खलन की वजह से जो क्षति नैनीताल में हुई थी उसकी भरपाई आजतक नहीं हो पाई उल्टा नैनीताल की वो जगह पूरी तरह कंक्रीट में बदल चुकी है।

नैनीताल को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए कई वैज्ञानिक और इंजीनियरों की कमेटियां बनाई गई,सभी की एक राय थी कि नैनीताल की सुंदरता को बचाने के लिए और आपदाओं का सामना करने के लिए नैनीताल में नाला तंत्र विकसित किया जाए,जब सभी ने इस पर सहमति जताई तो एक नायाब नाला तंत्र का निर्माण किया गया,पूरे नैनीताल को छोटे और बड़े चाहे प्राइवेट थे या सार्वजनिक,नालों से बांध दिया गया। सभी नालों से बरसाती पानी सीधे नैनी झील में जाने लगा,नैनी झील भी पानी से लबालब भरी हुई रहने लगी।धीरे धीरे प्रशासन की अनदेखी के चलते उस दौर के बने हुए नालों का वजूद मिटने लगा और जो नाले बच गए वो अतिक्रमण के नाम पर भेंट चढ़ गए,अब नैनीताल के नालो की मौजूदा हालात बिल्कुल ही अर्थहीन हो चुकी है,हो भी क्यों ना ?आखिर सियासी लालच के चलते खुद प्रशासन ने नैनीताल के सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण और संवेदनशील नाले के ऊपर ही तिब्बती बाजार जो बनवा दिया,ये वही नाला है जो नैनीताल के कई छोटे बड़े नालों का एक मिश्रण है और सीधा नैनी झील में जाता है,इसे नाला नंबर 26 भी कहा जाता था।आपको जानकर हैरानी होगी कि जो हिल साइड सेफ्टी एवं झील विशेषज्ञ कमेटी बनाई गई थी उसके ही इंजीनियरों ने अपने प्लॉट का दायरा बढ़ाने के लालच में नालों के गले मे फंदा डाल कर नालों का ही गला घोंट दिया,और उनकी चौड़ाई घटा दी,ये सब प्रशासन ने देख कर भी आंखों में पट्टी बांध ली।

2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नैनी झील के संरक्षण एवं प्रबंधन मामले में भारत सरकार के द्वारा करीब 48 करोड़ रुपये की राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना को मंजूरी दिलवाई।सूत्रों की मानें तो इस योजना के तहत 48 करोड़ में से करीब 5 करोड़ रुपये की लागत से झील में ऐरिएशन का काम हुआ बाकी काम तो अभी तक कुछ नज़र नहीं आया।नैनीताल के दिल यानी नैनी झील में जितने भी नाले जाकर मिलते हैं उनकी क्या दशा है ये किसी से छुपा नहीं है,कूड़े कचरे से इन नालों को ब्लॉक कर दिया जाता है,कहीं नालों के ऊपर घरों का निर्माण कर दिया है, तो कहीं खुद अतिक्रमण की हदें पार करते हुए जल संस्थान ने नालों के अंदर पानी की पाइप लाइनों को बिछाकर नालों का दम निकाल कर रख दिया।नालों में साफ सफाई तो दूर की बात है ,उल्टा इन पाइप लाइनों से और ज़्यादा कूड़ा करकट नालों में इकट्ठा होने लगा है।नैनीताल को बचाने के लिए इन नालों का साफ सुथरा होना बेहद ज़रूरी है,साथ ही नालों में कूड़ा करकट फेंकने वालों पर सख्त से सख्त जुर्माने लगाए जाने चाहिए,जब जब बारिश हो तब तब नालों की साफ सफाई होनी चाहिए,नालो के आसपास निर्माण पर पूरी तरह पाबंदी लगाई जानी चाहिए,अगर जल्द ही ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की जाती है, तो जो हाल बलदिया नाले का हो रहा है वैसा ही नैनीताल शहर के अंदर भी होने की संभावना बन सकती है।
नैनी झील की कुदरती बनावट में ही इसकी असल खूबसूरती छिपी है।दुर्भाग्य से झील के रखरखाव के लिये जिम्मेदार सरकारी महकमें ही इसकी प्राकृतिक शोभा को बदरंग करने पर आमादा हैं। मजेदार बात यह कि यह संरक्षण एशियन विकास बैंक की माली मदद से धरोहरों के संरक्षण के नाम पर हो रहा है।उत्तराखण्ड के पर्यटन महकमें की हेरिटेज भवनों के संरक्षण की एक ऐसी ही योजना नैनी झील के संरक्षण की सबब बन गई है।