मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का बड़ा बयान,उत्तराखण्ड में भी लागू करेंगे एनआऱसी

उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर(एनआरसी) पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का बड़ा बयान सामने आया है।मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा है कि अगर जरुरत पड़े तो वह उत्तराखण्ड में भी एनआरसी लागू करेंगे। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड दो अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं चीन व नेपाल से लगा हुआ राज्य है,वह कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे।जहां उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले ही एनआरसी का समर्थन करते हुए जरुरत पड़ने पर यूपी में भी लागू करने की बात कर चुके हैं,तो वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कल ट्वीट कर इसे हरियाणा में भी लागू करने की बात कर चुके हैं।
असम एनआरसी लागू करने वाला पहला राज्य है,जहां भारतीय नागरिकों के नाम शामिल करने के लिए 1951 के बाद एनआरसी को अपडेट किया जा रहा है।एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर और 1 जनवरी की रात जारी किया गया था,जिसमें 1.9 करोड़ लोगों के नाम थे।असम में बांग्लादेश से आए घुसपैठियों पर बवाल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी अपडेट करने को कहा था। पहला रजिस्टर 1951 में जारी हुआ था। ये रजिस्टर असम का निवासी होने का सर्टिफिकेट है। इस मुद्दे पर असम में कई बड़े और हिंसक आंदोलन हुए हैं। 1947 में बंटवारे के बाद असम के लोगों का पूर्वी पाकिस्तान में आना-जाना जारी रहा। 1979 में असम में घुसपैठियों के खिलाफ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने आंदोलन किया। इसके बाद 1985 को तब की केंद्र में राजीव गांधी सरकार ने असम गण परिषद से समझौता किया। इसके तहत 1971 से पहले जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे हैं,उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी।
उत्तराखण्ड के परिपेक्ष्य में भी एनआरसी एक महत्वपूर्ण मसला हो सकता है,क्योंकि उत्तराखण्ड नेपाल व चीन के दो अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं से लगा हुआ राज्य हैं,प्रदेश के ऊधमसिंह नगर जिले में बंगाली समुदाय की अच्छी खासी जनसंख्या है,जिसमें बांग्लादेशियों के अवैध घुसबैठ कर आने की आशंका भी कई बार व्यक्त की जा चुकी है,ऊधमसिंह नगर जिले के सीमापवर्ती क्षेत्र टनकपुर,बनबसा नेपाल की सीमा लगे हुए क्षेत्र हैं जहां से बांग्लादेशियों के नेपाल के रास्ते भारत में घुसने की शंका बनी रहती हैं,अपने देखने वाली बात होगी कि क्या उत्तराखण्ड में एनआरसी की जरुरत पड़ेगी एक ओर नैनीताल सांसद अजय भट्ट ऊधमसिंह नगर में रह रहे बंगाली समुदाय को आरक्षण की मांग कर चुके हैं,तो वहीं उनकी ही पार्टी के मुख्यमंत्री राज्य में एनआरसी लागू करने की बात कर रहे हैं।
असम एनआरसी लागू करने वाला पहला राज्य है,जहां भारतीय नागरिकों के नाम शामिल करने के लिए 1951 के बाद एनआरसी को अपडेट किया जा रहा है।एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर और 1 जनवरी की रात जारी किया गया था,जिसमें 1.9 करोड़ लोगों के नाम थे।असम में बांग्लादेश से आए घुसपैठियों पर बवाल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी अपडेट करने को कहा था। पहला रजिस्टर 1951 में जारी हुआ था। ये रजिस्टर असम का निवासी होने का सर्टिफिकेट है। इस मुद्दे पर असम में कई बड़े और हिंसक आंदोलन हुए हैं। 1947 में बंटवारे के बाद असम के लोगों का पूर्वी पाकिस्तान में आना-जाना जारी रहा। 1979 में असम में घुसपैठियों के खिलाफ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने आंदोलन किया। इसके बाद 1985 को तब की केंद्र में राजीव गांधी सरकार ने असम गण परिषद से समझौता किया। इसके तहत 1971 से पहले जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे हैं,उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी।
उत्तराखण्ड के परिपेक्ष्य में भी एनआरसी एक महत्वपूर्ण मसला हो सकता है,क्योंकि उत्तराखण्ड नेपाल व चीन के दो अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं से लगा हुआ राज्य हैं,प्रदेश के ऊधमसिंह नगर जिले में बंगाली समुदाय की अच्छी खासी जनसंख्या है,जिसमें बांग्लादेशियों के अवैध घुसबैठ कर आने की आशंका भी कई बार व्यक्त की जा चुकी है,ऊधमसिंह नगर जिले के सीमापवर्ती क्षेत्र टनकपुर,बनबसा नेपाल की सीमा लगे हुए क्षेत्र हैं जहां से बांग्लादेशियों के नेपाल के रास्ते भारत में घुसने की शंका बनी रहती हैं,अपने देखने वाली बात होगी कि क्या उत्तराखण्ड में एनआरसी की जरुरत पड़ेगी एक ओर नैनीताल सांसद अजय भट्ट ऊधमसिंह नगर में रह रहे बंगाली समुदाय को आरक्षण की मांग कर चुके हैं,तो वहीं उनकी ही पार्टी के मुख्यमंत्री राज्य में एनआरसी लागू करने की बात कर रहे हैं।