ब्रेकिंग : नेपाल ने बिना सबूत भारत के इलाकों को अपना बताने वाले संशोधित नक्शे को दी मंजूरी

भारत और नेपाल के संबंधों में आई खटास के बीच नेपाल की सरकार ने नए नक्शे को मंजूरी देकर मामले को और ज़्यादा बिगाड़ दिया है।कल निचले सदन में नक्शे को पास किया गया था,अब नक्शे को नेशनल असेंबली में भेजने की तैयारी की जा रही है।आपको बता दें कि नए नक्शे में भारत के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों को नेपाल का हिस्सा बताया है जिससे दोनों देशो के बीच विवादस्पद हालात पैदा हो गए हैं।

नेपाल ने नक्शा तो बना लिया लेकिन नेपाल के पास इस बात का कोई सबूत नही है कि भारत के ये इलाके नेपाल की सीमा के अंदर आते हैं।नक्शा बनाने के बाद नेपाल की सरकार ने एक कमेटी का गठन किया है जिसे निर्देश दिए गए है कि उन कागज़ातों को तलाशे जो साबित कर सके कि नए नक्शे में जिन इलाकों को जोड़ा गया है वो नेपाल के ही हिस्से में ही आते हैं।9 लोगो की इस कमेटी का नेतृत्व बिष्णु राज उप्रेती को सौंपा गया है जो वर्तमान में नेपाल की सरकार के पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर है।

दुनिया भर में नेपाल के इस कदम की कड़ी आलोचना की जा रही है।राजनीति के एक्सपर्ट की माने तो नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का कमेटी का गठन करना और भारत के हिस्सो को अपना बताना नेपाल का कमज़ोर पक्ष दिखाता है।नेपाल की स्थानीय मीडिया के जाने माने फोटोग्राफर बुद्धि नारायण श्रेष्ठ ने नेपाली न्यूज़ पेपर काठमांडू पोस्ट   में दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि अगर सरकार के पास पहले से सबूत नही थे तो आखिर क्यों झूठे दावे किए।नेपाल की सरकार खुद की किरकिरी करवाती नही थक रही है पूर्व नेपाली राजदूत दिनेश भट्टाराई ने भी नेपाल की इस हरकत पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि नक्शे के डॉक्युमेंट्स को ढूंढने के लिए बनाई गई कमेटी का गठन करने का मतलब है घोड़े के आने से पहले ही गाड़ी की तैयारी करना।

गौरतलब है कि नेपाल के संशोधित नक्शे में भारत की सीमा से लगे रणनीतिक महत्व रखने वाले लिपुलेख ,कालापानी,और लिंपियाधुरा इलाको को नेपाल का हिस्सा होने का दावा किया है और कहा है कि 1962 तक इन क्षेत्रों में नेपाल का कब्जा था,उस वक्त वही जनगणना का काम किया जाता था ,नेपाल के इन दावों को भारत सरकार ने सिरे से खारिज किया है।