देवभूमि में एक ऐसा मंदिर जहां महाकाली हर रात करती हैं विश्राम


यह मन्दिर देश की सबसे पुरानी सेना कुमाऊँ रेजीमेन्ट की असीम आस्था का केन्द्र भी है,इसे गंगोलीहाट महाकाली की महिमा ही कहेंगे कि कुमाऊँ रेजीमेंट के जवान माता के जयघोष के साथ ही लड़ाई में उतरते हैं,और दुश्मनों का सामना करते हैं।कुमाऊँ रेजीमेंट की सभी बटालियन के जवान और अधिकारी महाकाली के इस मंदिर में शीश झुकाने पहुंचते हैं।कुमाऊँ रेजीमेंट द्वारा मंदिर में सौंदर्यीकरण से लेकर निर्माण के काफी कार्य कराए गए हैं।सन1880 की कुमाऊं रेजिमेंट द्वारा चढ़ाई गई घंटी भी मंदिर में मौजूद है।कुमाऊँ रेजीमेंट के बड़े से बड़े अधिकारी अपनी तैनाती के दौरान महाकाली के मंदिर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं।कुमाऊँ रेजीमेंट के जवानों की आस्था मंदिर के साथ ऐसी है कि कहा जाता है कि बस महाकाली का नाम लेते ही लड़ाई के मैदान में जवानों की शक्ति दोगुनी हो जाती है।कुमाऊं रेजिमेंट का कोई भी जवान जय महाकाली के उद्घोष के बिना लड़ाई के मैदान में नहीं उतरता है।
महाकाली के दर्शनों के लिए हर साल लाखों की तादाद में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।चैत्र और शारदीय नवरात्रों में हाट कालिका मंदिर में भक्तों की भीड़ रहती है।मंदिर चारों ओर से देवदार के पेड़ों ने घिरा हुआ है,सैकड़ों साल पुराने देवदार के पेड़ मंदिर को और ज्यादा सुंदर और विहंगम बनाते हैं गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा के वैज्ञानिकों ने यहां रिसर्च की है जिसमें यह पता चला है कि मंदिर के कुछ पेड़ 450 साल पुराने हैं।