देखिए टिहरी लोकसभा सीट का पूरा इतिहास

गंगा-यमुना के साथ ही उनकी सहायक नदियों के उद्गम स्थल वाली लोकसभा की टिहरी सीट का भूगोल उत्तरकाशी के नेलांग घाटी (ट्रांस हिमालय) से लेकर देहरादून के तराई तक के 14 विधानसभा क्षेत्रों में फैली है। अंतराष्ट्रीय सीमाओं से सटे इस संसदीय क्षेत्र का भूगोल जटिल है तो सियासी भूगोल खासा रोचक। टिहरी रियासत के भारत में विलय के बाद यहां की सियासत की धुरी में राजशाही का ही वर्चस्व रहा है। 10 आम चुनाव और एक उप चुनाव में टिहरी राज परिवार से ही सांसद चुने गए। सियासी दलों के लिहाज से देखें तो आठ बार आम चुनाव और एक बार उप चुनाव में यह सीट कांग्रेस के पास रही, जबकि छह बार आम चुनाव और एक उप चुनाव में भाजपा ने पास। इस सीट पर एक-एक बाद जनता दल और निर्दल सांसद ने भी प्रतिनिधित्व किया।टिहरी सीट का क्षेत्र पूरब में गढ़वाल और दक्षिण में हरिद्वार लोकसभा सीट से जुड़ा है। पश्चिम में इसकी सीमा हिमाचल प्रदेश से लगी है तो उत्तर की तरफ चीन सीमा से सटी है। इसके अंतर्गत आने वाले 14 विस क्षेत्रों में नौ विशुद्ध रूप से पर्वतीय और पांच तराई क्षेत्र के हैं। 31 जनवरी 2019 तक यहां कुल 1449414 मतदाता पंजीकृत हुए हैं। विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री व यमुनोत्री धाम के साथ ही दुनिया का आठवां सबसे बड़ा टिहरी बांध भी यहीं है।

आजादी से पहले टिहरी गढ़वाल राजशाही के अधीन था। देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, मगर टिहरी रियासत 1 अगस्त 1949 में भारत में विलय हुई। इससे राजशाही का अंत तो हुआ, मगर स्वतंत्र भारत के लोकसभा चुनाव में यहां राजशाही एक धुरी बनी रही। 1952 के पहले आम चुनाव में राज परिवार से राजमाता कमलेंदुमति शाह ने निर्दल प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। 1957 में कांग्रेस के टिकट पर कमलेंदुमति शाह के बेटे एवं टिहरी रियासत के अंतरिम शासक रहे मानवेंद्र शाह सांसद चुने गए। इसके बाद कांग्रेस के टिकट पर मानवेंद्र शाह ने 1962 व 1967 में भी लगातार जीत दर्ज की। 1971 में कांग्रेस के टिकट पर परिपूर्णानंद पैन्यूली। 1977 में पर्वतपुत्र हेमवंती नंदन बहुगुणा समर्थित जनता दल के प्रत्याशी त्रेपन सिंह नेगी विजयी रहे। 1980 में कांग्रेस के त्रेपन सिंह नेगी ने जीत दर्ज की। 1984 में कांग्रेस के टिकट पर ब्रह्मदत्त लोकसभा पहुंचे। 1989 में भी वह दोबारा जीते। 1991 में इस सीट पर पहली बार भाजपा का खाता खुला और उसके मानवेंद्र शाह चुनाव जीते। इसके बाद लगातार 1996, 1998, 1999 व 2004 में भी मानवेंद्र शाह ने भाजपा के टिकट से जीत दर्ज की। मानवेंद्र शाह के निधन के बाद 2007 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के विजय बहुगुणा जीते। 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी विजय बहुगुणा ने मनुजेंद्र शाह को हराया। 2012 के उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह चुनाव जीती और 2014 में वह फिर से भाजपा के टिकट से जीतीं। 

उत्तरकाशी, देहरादून व टिहरी जिलों के अंतर्गत फैली इस लोकसभा सीट का सामाजिक सामाजिक-सांस्कृतिक तानाबाना काफी रोचक है। सांस्कृतिक लिहाज से यह क्षेत्र चार हिस्सों में बंटा हुआ है। यहां की 62 फीसद आबादी गांवों में निवास करती है, जबकि 38 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्रों में। सीट के अंतर्गत अनुसूचित जाति की जनसंख्या का आंकड़ा 17.15 फीसद है, जबकि अनुसूचित जनजाति की आबादी 5.8 फीसद है।

टिहरी लोकसभा सीट से भाजपा ने एक बार फिर माला राज्यलक्ष्मी शाह पर अपना भरोसा जताया तो वहीं कांग्रेस ने भी प्रीतम सिंह को मैदान में उतारा अब देखना होगा कि टिहरी सीट पर कौन अपना कब्जा कर पाता है।