जानिए देश की रक्षा करने वाले जवान जब बम विस्फोट या किसी ऑपरेशन में अपने शरीर के अंगों को गवा देते हैं, तो उसके बाद उनकी जिंदगी किस तरह की होती है।

देहरादून के डोईवाला में बीएसएफ इंस्टीट्यूट ऑफ एडवेंचर एंड एडवांस ट्रेनिंग सेंटर कि साल 2013 में स्थापना की गई।जहां देश-विदेश से सेना के अधिकारी और जवान सर्च एंड रेस्क्यू को लेकर तकनीक सीखने पहुंचते हैं। बीएसएफ देश की रक्षा में लड़ाई के दौरान अपने शरीर के अंगों को गंवा चुके जवानों को एक नई जिंदगी प्रदान कर रहा है, वह जवानों में आत्मविश्वास भर कर उन्हें पैरा ओलंपिक व एवरेस्ट फतह करने के लिए तैयार कर रही है।

बीएसएफ इंस्टीट्यूट ऑफ एडवेंचर एंड एडवांस ट्रेनिंग सेंटर के कमांडेंट राजकुमार नेगी ने बताया कि सेना में अपने शरीर के अंगों को गंवा देने वाले यह जवान सिर्फ पैरा माउंटेन बाइकिंग में ही प्रतिभाग नहीं कर रहे बल्कि एवरेस्ट के लिए भी तैयारी कर रहे हैं। बीएसएफ की टीम 25 दिव्यांग जवानों को एवरेस्ट की चोटी फतह करने के लिए ट्रेनिंग दे रही है। जिनको इन दिनों गंगोत्री ग्लेशियर में उच्च हिमालई क्षेत्रों में माउंटेनिंग करने की तकनीक सिखाई जा रही है।उनका कहना है कि 25 सदस्यों की टीम उत्तराखंड के अलग-अलग ग्लेशियर्स में इन दिनों ट्रेनिंग ले रही है, बीएसएफ इन 25 जवानों को एक साथ एवरेस्ट की चोटी पर ले जाकर इन के सपने को साकार करना चाहती है। साथ ही उन्होंने कहा कि विश्व में आज तक इतनी बड़ी सेना के जवानों की दिव्यांग टीम एवरेस्ट में नहीं पहुंची है, एकल तौर पर भले ही खिलाड़ियों ने एवरेस्ट फतह किया है, लेकिन टीम के रूप में यह कामयाबी हासिल नहीं हो पाई है इस बार इन जवानों के आत्मविश्वास को देखते हुए बीएसएफ इस कारनामे को करने जा रही है।


ट्रेनिंग ले रहे दल के सदस्य गुरलाल सिंह बताते हैं कि वह बीएसएफ में हैं, साल 2010 में बॉर्डर पर देश की रक्षा करते हुए एक जवान को बचाने के लिए यह कूद गए। लेकिन इस दौरान गोलाबारी की वजह से इनका एक पाव गंभीर रूप से जख्मी हो गया जिसे इलाज के दौरान काटना पड़ा। लेकिन अब  गुरलाल सिंह  बीएसएफ के  माउंटेन बाइकिंग के खिलाड़ी बन चुके हैं। आत्मविश्वास से भरे गुरलाल सिंह ने कड़ी मेहनत करके अपने आप को इस मुकाम तक लाने में कामयाबी हासिल की है। अब वह माउंटेन बाइकिंग के जरिए पैरा ओलंपिक में भारत के लिए गोल्ड जीतना चाहते हैं। 

इस टीम के और एक सदस्य सीआरपीएफ के वीरभद्र सिंह हैं, छत्तीसगढ़ के नक्सली क्षेत्र में साल 2013 में आईडी ब्लास्ट में ये भी अपना एक पैर गंवा बैठे। लेकिन खुद को कमजोर साबित करना शायद इन्होंने सीखा नहीं था इसलिए दिन रात मेहनत की और माउंटेन बाइकिंग के लिए खुद को एक बेहतर खिलाड़ी बनाकर ही दम लिया। वीरभद्र सिंह का कहना है कि वह दिन-रात ओलंपिक के लिए मेहनत कर रहे हैं। सेना के जवानों के अलावा माउंटेन बाइकिंग टीम में कुछ सिविलियंस भी शामिल हैं जो अलग-अलग हादसों में अपने हाथ और पांव गवा चुके हैं। इनका भी कहना है कि अपने सेना के टीम मेंबर्स के साथ वह बेहतर तरीके से ट्रेनिंग कर रहे हैं और उनके साथ अपना भी आत्मविश्वास बढ़ा रहे हैं इन सभी का मानना है कि अगर जीवन में विश्वास और जुनून साथ है तो किसी भी मुश्किल को आसान किया जा सकता है।


इन्हें ट्रेनिंग दे रहे बीएसएफ इंस्टीट्यूट ऑफ एडवेंचर एंड एडवांस ट्रेनिंग सेंटर के फिजिकल इंस्ट्रक्टर पीके नायक बताते हैं कि, माउंटेन बाइकिंग पहाड़ी रास्ता और खतरनाक ट्रेक पर की जाने वाली साइकिलिंग है।जिसे करना हर किसी के लिए आसान नहीं है। आम इंसान इन खतरनाक रास्तों पर साइकिलिंग करने से भी घबराता है, लेकिन ऐसे रास्तों में पैरा माउंटेन बाइकिंग के खिलाड़ी जबरदस्त आत्मविश्वास के साथ हर मंजिल को पार करते जा रहे। करीब साढे 18000 फीट की ऊंचाई पर माणा पास में 15 अगस्त को यह खिलाड़ी अपना जौहर दिखाएंगे। उनका कहना है कि इन खिलाड़ियों का आत्मविश्वास देखने लायक है। देश की रक्षा करते हुए जहां इन्होंने अपने शरीर के अंगों को गवा दिया वहीं अब देश के नाम के लिए वे दिन रात मेहनत कर रहे हैं।