क्रिसमस विशेष - चर्चों का शहर नैनीताल ! जहाँ एशिया का पहला मैथोडिस्ट चर्च बना।

पर्यटन के लिये विख्यात सरोवर नगरी नैनीताल में ईसाई धर्म का विशेष इतिहास रहा है। क्रिसमस के मौके पर अगर बात गिरजाघरों की जाए तो कम ही लोग जानते हैं कि एशिया का पहला मैथोडिस्ट चर्च न केवल नैनीताल में मौजूद है बल्कि यहाँ करीब आधा दर्जन मुख्य चर्चों के अलावा एक दर्जन से अधिक चैपल भी नैनीताल में मौजूद हैं,लिहाजा इस शहर को चर्चों का शहर भी कहा जाता है। प्राकृतिक खूबसूरती के साथ ही नैनीताल शहर ईसाई धर्म का केंद्र भी रहा है। चर्चों में मल्लीताल रिक्शा स्टैंड के समीप स्थित मैथोडिस्ट चर्च का इतिहास बेहद पुराना रहा है।इस वर्ष इस चर्च ने अपनी 161वीं वर्षगांठ भी मनाई, इस चर्च की स्थापना 1858 में एक अंग्रेज विलियम बटलर द्वारा की गई थी,और इसी के साथ यह अंग्रेजों द्वारा एशिया में स्थापित किया गया पहला मैथोडिस्ट चर्च भी बन गया था। 


अंग्रेजों को हमेशा से ही नैनीताल शहर बेहद पसंद रहा था, वे इस शहर की तुलना यूरोपियन देशों से किया करते थे और अंग्रेजों ने ही इस शहर को छोटी विलायत का नाम दिया था। शायद यही कारण रहा था कि अंग्रेजों ने इस खूबसूरत शहर में पहली बार मैथोडिस्ट चर्च की नींव रखी,और इसके अलावा भी कदम कदम पर नैनीताल शहर में चर्च और चैपल की स्थापना की।अपने ऐतिहासिक महत्व के चलते नैनीताल के चर्च लोगों की आस्था और पर्यटन का मुख्य केंद्र बनते जा रहे हैं। नैनीताल पहुंचने वाले विदेशी सैलानियों के साथ ही भारतीय सैलानियों के लिये मैथोडिस्ट चर्च प्रार्थना के लिये पहली पसंद रहता ही है इसके अलावा शहर के अन्य चर्चों में भी लोग पहुंचते हैं, खासकर आज के दिन यानी क्रिसमस के मौके पर नैनीताल के चर्चों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। 1844 में स्थापित हुये शहर के सेंट जोंस चर्च का इतिहास भी बेहद पुराना रहा है इस चर्च को लेक चर्च भी कहा जाता है। ब्रिटिश स्थापत्यकला का यह गिरजा घर अदभुत नमूना है। जिसमें जर्मनी से लाए शीशों से प्रभु यीशू की बेदी बनी है। क्रिसमस पर्व और नई ईयर सेलिब्रेशन के चलते इनदिनों सरोवर नगरी नैनीताल पर्यटको से गुलजार है जहां सैलानी माल रोड में चहल कदमी करते नजर आ रहे हैं तो वहीं दुल्हन सरीके से सजे चर्च चर्चाओं में बने हुए हैं।इन ऐतिहासिक गिरजाघरों में खास बात यह रहती है कि क्रिसमस के त्योहार में शहर के हर धर्म के लोग शामिल होते हैं।