क्या यही है डबल इंजन का विकास,छत से गिरी महिला को डोली से पहुंचाया अस्पताल

प्रदीप महरा बेरीनाग पिथौरागढ़

डबल इंजन की सरकार रही हो या सिंगल इंजन की,जिस पार्टी ने भी उत्तराखंड की गद्दी संभाली उसने सिर्फ और सिर्फ यहाँ के विकास के नाम पर ही जीत हासिल की लेकिन ज़मीनी तौर पर काम करने में सभी के इंजन फ़ेल ही साबित हुए।पहाड़ों के गांव की जिन्दगी आज भी बदहाली की मार झेल रही है।गांधारी बनी सरकार को गांव वालों का ना तो दर्द दिखता है, ना गांव वालों के दर्द की आवाज़ ही सरकार को सुनाई देती है।पक्की सड़क ना होने से जिंन मुश्किलों का सामना इन गांव वालों को करना पड़ता है,उसका तिल बराबर भी सरकार चलाने वाले एसी में बैठे नुमाइन्दे नहीं झेल सकते।

पहाड़ों के गांव का ताज़ा मामला पिथौरागढ़ और बागेश्वर की अंतिम सीमा पर स्थित विकास खंड बेरीनाग के पौंसा गांव का है,जहाँ सुबह 9 बजे 65 वर्षीय वृद्ध महिला खिमुली देवी अचानक छत से गिरकर घायल होकर लहुलहान हो गयी, महिला के गिरते ही परिवार के सदस्यों में कोहराम मच गया।पड़ोस के ग्रामीणों ने महिला को उपचार के लिए आठ किलोमीटर दूर बेरीनाग ले जाने की बात कही,लेकिन गांव में सड़क नहीं होेने से ग्रामीणों के लिए परेशानी खड़ी हो गयी, तभी ग्रामीणों ने लकड़ी की डोली में रखकर ले जाने का निर्णय लिया।तीन किलोमीटर पैदल डोली में रखकर पोस्तला तक गांव के वृ़द्ध और युवा महिला को लेकर आये,वहां से निजी वाहन से बेरीनाग सीएचसी पहुंचाया गया।अस्पताल लाने तक वृद्ध महिला का सिर और पैर में लगी चोट के कारण बहुत अधिक खून बह चुका था,अस्पताल में वृ़द्ध महिला के सिर में 40 टांके लगे। महिला की हालत को देखते हुए डाक्टर देवेश कुमार ने जिला चिकित्सालय रैफर कर दिया है।गांव में सड़क नही होने की समस्या को लेकर ग्रामीणों में सरकार की लापरवाही और पहाड़ों के गांवों की अनदेखी को लेकर बहुत ज़्यादा गुस्सा फूट पड़ा।

सामाजिक कार्यकर्ता प्रकाश बोरा ने बताया कि पिछले डेढ दशक से सड़क की मांग की जा रही है,पूर्व में लोक सभा चुनावों का ग्रामीणों के द्वारा बहिष्कार भी किया जा चुका है,कई बार सड़क बनाने की मांग को लेकर सीएम से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन भी सौंपा जा चुका है,लेकिन उसके बाद भी सड़क का निर्माण नही हो रहा है, गांव से आये दिन गर्भवती महिलाओं और गंभीर रोगियों को डोलियों में रखकर अस्पताल पहुंचाना पड़ता है।सड़क नहीं होने से लगातार गांव से पलायन जारी है।यदि शीघ्र सड़क का निर्माण नहीं होता है, तो ग्रामीण पंचायत चुनावों के बहिष्कार को लेकर जैसा कि पूर्व में सरकार को ज्ञापन भी दे चुके हैं,आगे भी चुनाव का पूर्ण रूप से बहिष्कार करेंगे।क्योंकि चुनावी सीजन में तो सब आकर गांव के भोले भाले लोगों को ढेरों सपने दिखा जाते हैं ,लेकिन जीतने के बाद इन गांव वालों की सुध तक लेने वाला कोई नहीं होता। पिछले 5 सालों में ना जाने कितनी बार पानी की किल्लत हो या पक्की सड़क बनवाने के लिए गांव के लोग प्रार्थना पत्र भी जनप्रतिनिधियों को दे चुके हैं, लेकिन वो प्रार्थना पत्र कूड़े के ढेर में ही फैंके जाया करते हैं, शायद इसलिए क्योंकि प्रार्थना पत्र वोट नहीं होते।सबसे बड़ा जुमला तो तब लगता है जब सरकार हर गांव को सड़क से जोड़ने और गांवों में रोजगार जैसी सुविधायें देने के लिए बात कर रही है।