कोरोना से जंग में सामने आई गुड़ न्यूज

कोरोना वायरस के खिलाफ भारत समेत पूरी दुनिया में जंग चल रही है । कोरोना वायरस के कहर ने पूरे विश्व में हाहाकार मचा दिया है।
काल बन चके इस महामारी से 10 लाख से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हैं, जबकि अब तक 50 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। इस भयंकर महा मारी से बचने के लिए दुनिया के अधिकांश देशों में लॉकडाउन जैसे कदम उठाए गये है । तो वही दुनिया मे इस के चलते कारोबार चौपट हो चुके है।
कोरोना वायरस से जल्द से जल्द छुटकारा पाने के लिए तमाम देश इसके इलाज की खोज में लगे हुए हैं। देश और विदेश के वैज्ञानिक इस को मात देने और लोगों को इस के कहर से बचाने के लिए रात दिन रिसर्च में लग हैं। ऐसे में अमेरिकी से एक गुड न्यूज सामने आई है।
जहां एक तरफ दुनियाभर के महान वैज्ञानिक इस वायरस के खात्में के लिए रिसर्च कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने दावा कि वो अन्य देशों की अपेक्षा कोविड -19 को मात देने की वैक्सीन बनाने में कामयाब हो गए हैं।वैज्ञानिकों ने बताया कि उन्होंने इस वैक्सीन को बनाने के लिए सार्स और मर्स दोनों ही वायरस को आधार माना है।
वैज्ञानिकों के अनुसार कोरोनावायरस काफी कुछ सार्स और एमएआरएस नामक वायरस से मिलता जुलता है। वैज्ञानिकों ने चेताया, चूंकि पशुओं को बहुत लंबे वक्त तक ट्रैक नहीं किया गया है, ऐसे में यह कहना जल्दबाजी होगा कि इम्यून सिस्टम कोरोनावायरस से कितना लड़ सकता है। लेकिन चूहों पर यह टीका बेजोड़ साबित हुआ है। इसने इतने एंटीबॉडीज पैदा किए कि कम से कम साल भर तक यह वायरस को बेअसर करने में सक्षम है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि कोविड-19 के साथ करीब से जुड़े दो वायरस (सार्स और मर्स) ने हमें स्पाइक प्रोटीन के बारे में सिखाया जो वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी पैदा करने में अहम है। इस वैक्सीन को इन शोधकर्ताओं ने पिटकोवैक नाम दिया है। यह वायरल प्रोटीन के प्रयोगशाला में निर्मित टुकड़ों से बनकर प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाता है जैसा कि फ्लू में होता है।
शोधकर्ताओं ने इसका प्रभाव बढ़ाने के लिए दवा देने की नई तकनीक का उपयोग किया उन्होंने उंगली की नोंक के बराबर के 400 बहुत महीन सुइयों का पैच बनाया जो त्वचा में स्पाइक प्रोटीन के टुकड़े इंजेक्ट कर देती है, जहां प्रतिरोधी क्षमता सबसे मजबूत होती है। यह पैच प्लास्टर की तरह चिपकता है और सुइयां त्वचा के अंदर चली जाती है, जो शुगर और प्रोटीन से बनी होती हैं।
हालांकि अगर ये परीक्षण सफल भी हो जाता है तो भी बाजार में वैक्सीन को आने में 12 से 18 महीने लगेंगे। क्योंकि इस टीके का असर समझने में कई महीने लग सकते हैं। इस परीक्षण के लिए 18 से 55 साल के 45 स्वस्थ लोगों का चयन किया गया है। इन पर 6 हफ्ते तक टीके के असर का अध्ययन किया जाएगा।ये वैक्सीन दुनिया में रिकॉर्ड टाइम में विकसित किया गया है। चीन में इस बीमारी का पता चलने के बाद केपीडब्ल्यू रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक इस वैक्सीन को विकसित करने में जी-जान से लगे है
चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ कोरोना वायरस का संक्रमण चीन में मौत का तांडव मचा रखा था। जिससे बचने के लिए चीन ने भी ठीक हो चुके लोगों के ब्लड से कोरोना के अधिकांश मरीजों का इलाज किया था। ये प्रयोग कारगार भी साबित हुआ था।