कांग्रेस आलाकमान भी नहीं टालता इस नेता की बात

अक्सर ये कहावत तो अपने सुनी होगी की जो जीता वही शिकंदर, जीं हाँ ये कहावत प्रदेश में वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत पर सटीक बेठती नज़र आ रही हैं। ये हम इसलिए कह रहे है की जब कोंग्रेस सत्ता से बहार हुई और हरीश रावत विधानसभा चुनाव में दोनो सीटों से हार का सामना करना पड़ा।

तब माना जा रहा था हरीश अब राजनीति से दूर हो जाएँगे क्यूँकि हरीश पार्टी आलाकमान की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए। जिसका नतीजा ये रहा की राहुल गांधी ने प्रदेश में युवा चेहरे प्रीतम सिंह को संगठन की और सरकार पर सदन में प्रहार करने के लिए नेता प्रतिपक्ष के रूप में इंदिरा हिर्देश को दयित्व सौंपा।ऐसे में हरीश गुट पूरी तरह हाशिए पर खड़ा नज़र आ रहा था। 

इसलिए बार बार इंदिरा और प्रीतम हरीश रावत पर प्रहार करते नज़र आए,लेकिन सब लोगों भूल गए की हरीश कोंग्रेस से राजनीति के पुराने बसमती चावल हैं,जिसका नतीजा ये रहा की राहुल गांधी ने हरीश रावत को राष्ट्रीय महासचिव और असम राज्य के प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी और हरीश एक बार फिर राजनीति में शिखर पर पहुँच गए।

कई बार इंदिरा और प्रीतम की जोड़ी ने हरीश के ख़िलाफ़ बयान देकर हमला बोला लेकिन हरीश शब्द बाणो को सहन करते नज़र आए। जब लोकसभा चुनाव के दौरान माना जा रहा था की चुनाव में कौन योद्धा मेदान में होंगे उसका निर्णय संगठन के मुखिया लेंगे,लेकिन हरीश का क़द इतना बड़ा हुआ की अपने लिए फ़ेवरेट सीट चुनने के साथ अपने चहितो को भी टिकट दिलाया और हरीश रावत दिखा दिया की वो प्रदेश में कोंग्रेस के पुराने बासमती के चावल है जो जितना पुराना होगा उतना महकेगा।