उत्तराखंड में सहकारिता के आधार पर हो प्राचीन घराटों का संचालन

जिला मुख्यालय शिवलिंगा होटल में आयोजित कार्यशाला में नॉर्थम्ब्रिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर संजय भौमिक ने बताया कि सीमित संसाधनों के इस युग में प्राकृतिक ऊर्जा के स्रोतों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों में सदियों से संचालित होने वाले घराटों का महत्व अब पहले से भी अधिक बढ़ गया है।लेकिन देखरेख की कमी,आय के सीमित साधन एवं तकनीकी ज्ञान के अभाव में जल ऊर्जा को यांत्रिक व विद्युत ऊर्जा में बदलने घराटों की संख्या धीरे धीरे घट रही है।उन्होंने बताया कि इस समस्या से निपटने के लिए ग्लोबल चैलेंज रिसर्च फंड(जीसीआरई)ने घराट जैसी प्राचीन वैज्ञानिक कला को पुनर्जीवित करने का दिशा में कदम बढ़ाया है।कार्यशाला यूपीईएस के डॉ.प्रसूम द्विवेदी ने बताया कि इंग्लैंड के पर्वतीय इलाकों में भी सहकारिता के आधार पर घराटों का संचालन किया जाता है।जिससे वहां के ग्रामीण अपनी घरेलू जरूरत की बिजली हासिल करने के साथ ही कई अन्य रोजगार कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।विदेश में अपनाई जा रही इन सफल तकनीकों का उत्तराखंड में भी प्रयोग कर ग्रामीणों के जीवन को सुधारा जा सकता है।कार्यशाला में घराट संचालक विजयेश्वर डंगवाल को नई दिल्ली में आयोजित वर्ल्ड वॉटर समिट में घराट विषय पर जानकारी साझा करने के लिए सम्मानित किया गया।इस मौके पर सहायक निदेशक मत्स्य प्रमोद शुक्ला,उरेडा की परियोजना अधिकारी वंदना, शिवम जोशी,चंद्रशेखर चमोली,बचन लाल,बुद्धि लाल,मगन लाल,मंगल सिंह कुमाईं आदि अनेक लोग मौजूद रहे।