महाशिवरात्रि विशेष: शिवालयों में लगा भक्तों का तांता! नैनीताल में गुफा महादेव में ज़मीन के नीचे से निकला था शिवलिंग! कब हुआ था गुफा महादेव मंदिर का निर्माण? किसे सुनाई दी थी ज़मीन से आती आवाज़?

पूरे देश में शिवरात्रि का पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है, नैनीताल में भी शिवरात्रि के मौके पर शिवालयों में भारी भीड़ जुटी रही , नैनीताल के प्रसिद्ध नयना मंदिर में भी सुबह से ही पूजा अर्चना के लिये श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा भगवान शंकर की पूजा के लिये भक्त लम्बी लम्बी कतारों में खड़े दिखाई दिये, और बम बम भोले के जयकारो की एसी धूम मची कि सभी भक्त भक्ति में और भी ज्यादा डूब गये भक्त शिव लिंग में दूध और जल से अभिषेक के साथ ही बेलपत्र और बेर को भगवान शंकर के चरणों में अर्पित करते नजर आए। भक्तों का मानना है कि भगवान शंकर मात्र बेलपत्री एवं सच्ची भक्ति से ही मनचाहा फल प्रदान करते हैं शिव ही सृष्टि के रचियता है और विनाशक भी लिहाजा शिवरात्रि के मौके पर भगवान शंकर की पूजा अर्चना से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ती होती है।
नैनीताल के समीप स्थित गुफा महादेव में है स्वयंभू शिवलिंग
नैनीताल से महज कुछ ही दूरी पर कृष्णापुर में गुफा महादेव मंदिर शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। यहां स्वयंभू शिवलिंग यानी धरती के अंदर से स्वयं निकला शिवलिंग है। महाशिवरात्रि के पर्व पर यहां शिवभक्तों का तांता लगा रहता है। कांवड़ियों की लंबी कतार लगी रहती है।
इस ऐतिहासिक मंदिर के इतिहास के बारे में इतिहासकार प्रो. अजय रावत बताते है कि मंदिर का निर्माण 1892 में हुआ था, क्षेत्र के निवासी रहीस कृष्णा साह की पत्नी शिवभक्त थीं। उन्हें मंदिर स्थापना से पहले शिवरात्रि की सुबह ऐसा लगा मानो साक्षात शिव उन्हें आवाज दे रहे हों और कह रहे हों कि मैं भूमिगत हूँ। उन्होंने शिव से पूछा कि उस स्थान की खोज कैसे करेंगी तो कहा गया कि उस स्थान पर आंशिक तौर पर अंधेरे में प्रकाशमान होगा।
उन्होंने इस घटना के बारे में अपने पति को बताया, जो खुद शिवभक्त थे। शिवरात्रि के दिन इस स्थान पर खुदाई की, तो शिवलिंग दिख गया। इसके बाद यह स्थान एक तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध हो गया। शिवलिंग में प्राकृतिक रूप से जलधारा गिरती है। प्रो. रावत कहते हैं कि उत्तराखंड के लोग अनादिकाल से ही शिव की पूजा करते हैं जबकि बह्मा, विष्णु की उपासना आर्यों के आगमन के बाद आरम्भ हुई।
1882 में अंग्रेजों ने एक सर्वेक्षण कराया था, जिससे पहाड़ में शिवजी की लोकप्रियता का भान होता है। उस साल सर्वेक्षण से पता चला कि शिव के कुमाऊं में 250 मंदिर व गढ़वाल में 350 मंदिर हैं जबकि भगवान विष्णु के केवल 35 कुमाऊं में व गढ़वाल में 61। मंदिर के पुजारी दीपक जोशी के साथ ही मंदिर समिति के प्रयासों से आज गुफा महादेव में भव्य मंदिर बन गया है। महाशिवरात्रि पर यहां भक्तों का शिवलिंग में जलाभिषेक के लिए तांता लगा रहता है।
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