बागेश्वरः खड़िया खनन रूकने के बाद लौटने लगी रौनक! आशियानों की तरफ लौट रहे जंगली जानवर, चहल-कदमी करते दिखा तेंदुआ

बागेश्वर। उत्तराखंड के बागेश्वर की शांत ढलानों पर जहां कभी भारी मशीनरी के वजन से धरती कांपती थी, वहां पर हाईकोर्ट के खनन बंद के फैसले के बाद एक तेंदुआ शान से घूमता नजर आया। सोपस्टोन खनन की गगनभेदी दहाड़ अब शांत हो गई है, जिससे प्रकृति को अपनी खोई हुई ज़मीन वापस मिल गई है। कभी लगातार खनन का केंद्र रहे ये इलाके अब अपने मूल निवासियों, तेंदुओं और अन्य जंगली जानवरों की वापसी देख रहे हैं, जो उस जगह शरण पा रहे हैं जहां कभी विनाश का बोलबाला था। बागेश्वर का कांडा क्षेत्र लंबे समय से अवैध खनन के प्रतिकूल प्रभावों से पीड़ित था, जहां घरों में दरारें पड़ रही थीं और कृषि भूमि को भारी नुकसान पहुंच रहा था। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पिछले साल इस मुद्दे का स्वतः संज्ञान लिया था, जब मीडिया रिपोर्टों ने अनियमित उत्खनन के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान और स्थानीय समुदायों को होने वाले नुकसान को उजागर किया था। इसने प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण करने के लिए आयुक्तों को नियुक्त किया, और उनकी रिपोर्ट ने व्यापक अवैध खनन की पुष्टि की।
इसके बाद न्यायालय ने जनवरी में खनन गतिविधियों पर पूरे जिले में प्रतिबंध लगा दिया और भारी मशीनरी को जब्त करने का आदेश दिया। मामला न्यायिक समीक्षा के अधीन है। वर्षों से शोर, कंपन और मानवीय गतिविधियों के कारण जंगली जानवर अक्सर आस-पास के गांवों की ओर चले जाते थे, जिससे मनुष्यों और वन्यजीवों दोनों के लिए सुरक्षा संबंधी चिंताएं पैदा होती थीं। लेकिन खनन कार्य बंद होने के कारण यह क्षेत्र विस्थापित वन्यजीवों के लिए सुरक्षित शरणस्थली के रूप में काम कर रहा है। धपोली के ग्राम प्रधान आनंद धपोला याद करते हैं कि जब खनन सक्रिय था, तब शोर कितना असहनीय था। ध्वनि इतनी तीव्र थी कि हम एक-दूसरे की बात भी नहीं सुन पाते थे। मशीनों के कंपन से ज़मीन कांप उठती थी। उन्होंने कहा कि अब शांति लौट आई है और जंगली जानवर भी। बुज़ुर्ग भगवत सिंह ने कहा कि खनन शुरू होने से पहले, यह क्षेत्र अपने समृद्ध तेंदुओं की आबादी के लिए जाना जाता था।
धपोली, घाटगढ़, धपोलासेरा और बखेत जैसी जगहों पर कई गुफाएं थीं, जिन्हें हम अपनी स्थानीय भाषा में ‘बाघ का उडियार’, ‘बाघ की गुफा’ कहते हैं। ये गुफाएं पीढ़ियों से तेंदुओं का घर थीं। लेकिन खनन ने इन आश्रयों को नष्ट कर दिया, जिससे उन्हें भागने पर मजबूर होना पड़ा। अब जब खदानें बंद हो गई हैं, तो वे वापस लौट रहे हैं। हालांकि आस-पास के ग्रामीण चिंतित हैं कि अब मानव-पशु संघर्ष बढ़ जाएगा। बागेश्वर वन विभाग ने कहा कि तेंदुए की गतिविधि में वृद्धि दर्ज की गई है, लेकिन अभी तक मनुष्यों या पशुओं पर कोई हमला नहीं हुआ है। एहतियात के तौर पर अधिकारियों ने इन बड़ी बिल्लियों की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए गांवों के आसपास कैमरा ट्रैप लगाना शुरू कर दिया है। बागेश्वर के प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) ध्रुव सिंह मार्तोलिया ने कहा कि स्थिति पर बारीकी से नज़र रखी जा रही है। फ़िलहाल बागेश्वर की ढलानों पर एक दुर्लभ उलटफेर देखने को मिल रहा है, जहां पहले मशीनों का बोलबाला था, वहां अब प्रकृति ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है।