शुरु हुई चारधाम यात्रा

विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री,यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा का विधिवत शुभारंभ हो गया।मंगलवार को अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर गंगोत्री धाम में विधिवत हवन, पूजा-अर्चना, वैदिक मंत्रोच्चारण एवं धार्मिक रीति-रिवाजों साथ गंगोत्री के कपाट पूर्वाहन 11.30 बजे खोले गए। वहीं, यमुनोत्री धाम के कपाट भी दोपहर 1.15 बजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए कपाट खुलने के अवसर पर श्रद्धालुओं ने गंगोत्री में गंगा के जयकारे लगाए। साथ ही गंगा स्नान किया तथा गंगोत्री के दर्शन किए। इस अवसर पर गढ़वाल आयुक्त डॉ. बीवीआरसी पुरूषोत्तम, जिले के प्रभारी मंत्री धन सिंह रावत, विधायक गोपाल रावत, मंदिर समिति के अध्यक्ष सुरेश सेमवाल, सचिव दीपक सेमवाल सहित विभिन्न श्रद्धालु मौजूद थे।  

यमुना के शीतकालीन प्रवास स्थल खरसाली से यमुना की डोली शनि देव की अगुआई में यमुनोत्री के लिए रवाना हुई। मंगलवार सुबह 8:40 बजे पर यमुना की डोली खरसाली स्थित यमुना मंदिर से बाहर निकाली गई। इसके बाद 8:45 पर यमुनोत्री के लिए रवाना हुई। रवाना होने से पूर्व स्थानीय लोगों ने पारंपरिक लोक नृत्य किया। साथ ही यमुना की डोली को भव्य रूप से सजाया। यमुनोत्री के कपाट आज दोपहर 1.15 बजे खोल दि‍ए गए। वहीं, भैरव घाटी में रात्रि विश्राम के बाद आज सुबह 7:30 बजे गंगा की डोली गंगोत्री के लिए रवाना हुई। रवाना होने से पूर्व भैरव घाटी में स्थित भैरव मंदिर में विधि विधान से पूजा अर्चना की गई। भैरव को मां गंगा का द्वारपाल भी कहा जाता है। मान्यता है कि बिना भैरव के दर्शन के गंगोत्री की यात्रा पूरी नहीं होती। इसलिए भैरव घाटी के भैरव देवता का अपना महत्व है। गंगोत्री में 9:30 बजे के करीब गंगा की डोली पहुंची। इसके बाद गंगा लहरी, गंगा सहस्त्रनाम आदि का पाठ किया गया।ठीक 11:30 बजे गंगोत्री के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। 

चारधामों में शामिल यमुनोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पर्व पर आज आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं यमुनोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया को ही क्यों खुलते हैं। अक्षय यानी जो कभी क्षय (समाप्त) न हो। साल में एक दिन ऐसा होता है जिस दिन अगर कुछ भी काम किया जाए तो वह अशुभ नहीं होता है। वह है बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि। इस दिन सारे काम सिद्ध होते हैं। मान्यताओं के अनुसार यमुनोत्री धाम का सीधा संबंध यमुना से है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यमुना सूर्य की पुत्री है। शनि और यम भी सूर्य के पुत्र हैं। किंदवंतियों के अनुसार हनुमान भी यमुना को अपनी बहन मानते थे। सदियों पहले यमुना जी ने तीनों भाइयों से एक साथ मिलने की इच्छा जताई। इस पर विचार कर तीनों भाई अक्षय तृतीय के दिन अपनी बहन यमुना से मिलने आए। वहीं वे गंगा से भी मिले। इस पर तीनों प्रतापी भाइयों ने घर लौटते वक्त अपनी बहन को वरदान दिया कि तीर्थों में सबसे पहले यमुना की पूजा होगी। इस दिन जो भी यमुनोत्री धाम आकर दर्शन करेगा उसके सभी पाप नष्ट होंगे। इसके बाद यम, शनि और हनुमान वापस चले गए और भाई दूज के दिन वापस आए। बहन से भेंट कर यमुना के भेंट स्वरूप कुछ मांगने पर तीनों भाइयों ने कहा कि अक्षय तृतीय के दिन से भाई दूज तक जो भी यमुनोत्री धाम से इलाहबाद तक किसी भी तट पर यमुना में स्नान करेगा, यम उसकी मृत्यु को टाल देगा। वहीं शनि भी उस व्यक्ति को साढ़े सती के प्रकोप से दूर रखेगा। हनुमान जी ने कहा कि यमुना के धाम आने पर उस व्यक्ति के मैं सारे कष्ट हर लूंगा। 

राजा भगीरथ की कड़ी तपस्या के बाद मां गंगा धरती पर आई। लेकिन एक ऐसी जगह भी है जहां मां गंगा खुद भगवान शिव की परिक्रमा करती हैं। यह धाम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित पवित्र गंगोत्री है। विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री धाम में सूर्य कुंड और गौरी कुंड अपना अलग ही महत्व रखते हैं। कहा जाता है कि आज भी भागीरथी की धारा इन्हीं कुंडों से होकर आगे बढ़ती है। पुराणों में भी इन दो कुंडों का उल्लेख किया गया है। इतना ही नहीं इनकी खूबसूरती निहारने के लिए दुनिया भर से सैलानी हर साल यहां पहुंचते हैं। बता दें कि हर साल अक्षय तृतीया के मौके पर गंगोत्री धाम के कपाट विधिविधान के साथ आम लोगों के दर्शनार्थ खोले जाते हैं।  गंगोत्री में एक शिला पर बैठकर राजा भगीरथ ने साढ़े पांच हजार साल तक तपस्या की थी। राजा भगीरथ ने जिस शिला पर बैठकर तपस्या की थी, उसे भगीरथ शिला कहते हैं। ये शिला आज भी यहां मौजूद है।मान्यता है कि जब गंगा स्वर्ग से धरती पर उतरी तब गंगोत्री मंदिर से कुछ दूरी पर ही राजा भगीरथ ने सूर्यदेव को जल चढ़ाया था। यहां गंगा (भागीरथी) एक धारा के रूप में पूरब दिशा की ओर कुंड में गिरती है। गंगोत्री मंदिर से 500 मीटर की दूरी पर गौरी कुंड स्थित है। ये कुंड गंगा के बीच में विद्यमान है। कहा जाता है कि गौरी कुंड में भगवान शंकर ने मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया था। आज भी यहां पर पत्थर का एक शिवलिंग है। इसी शिवलिंग की गंगा परिक्रमा करती हैं। इस शिवलिंग के दर्शन शीतकाल में तब होते हैं,जब भागीरथी का जलस्तर कम रहता है।चारधाम यात्रा भी विधिवत शुरुआत हो गई है। लेकिन, विडंबना देखिए कि धाम में चुनौतियां ज्यों की त्यों बरकरार हैं। संचार, स्वास्थ्य, घोड़ा-खच्चर, डांडी-कंडी, सड़क व पैदल मार्ग से लेकर धाम में घाट, पुलिया व स्नान कुंड तक यात्रा व्यवस्थाएं दुरुस्त होने के दावों की कलई खोल रहे हैं। जानकी चट्टी से लेकर यमुनोत्री तक पांच किमी लंबे पैदल रास्ते को प्रशासन ने यमुना पथ का नाम दिया है। लेकिन, इस पैदल मार्ग पर अव्यवस्थाओं के चलते इस बार भी यात्रियों को खासी मुश्किलें झेलनी पड़ेंगी। कई स्थानों पर यह मार्ग खस्ताहाल स्थिति में है।मार्ग संकरा होने के कारण यात्रा सीजन पर यहां जाम के झाम से भी यात्रियों को जूझना पड़ेगा। बावजूद इसके प्रशासन ने यात्रियों को यमुना पथ पर सुविधाएं देने के लिए कोई ठोस इंतजाम नहीं किए हैं।समुद्रतल से 3235 मीटर (10610 फीट) की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री धाम में समय-समय पर आई छोटी-छोटी आपदाओं से बड़ा नुकसान हुआ है। बीते 15 वर्षों में यमुनोत्री धाम में चार आपदाएं आ चुकी हैं, जिनका दंश यह धाम अब तक झेल रहा है। बीते वर्ष जुलाई में आई आपदा ने तो यमुनोत्री का भूगोल ही बदल डाला। बावजूद इसके अभी तक धाम के पुनर्निर्माण को कोई मास्टर प्लान नहीं बना है।