भीख मांगते बच्चों से लेकर स्कूल जाने वाले बच्चों में नशे की बढ़ती लत

युवाओं में नशे की लत दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है,उत्तराखंड राज्य में हाईकोर्ट के सख्त रवैयै के बाद भी देवभूमि उत्तराखंड में युवा ही नहीं बल्कि अब खेलने कूदने और पढ़ने लिखने वाली उम्र के बच्चे भी नशे की गिरफ्त में आ चुके हैं,राजधानी देहरादून में ही 36प्रतिशत से ज्यादा के आंकड़े बताते हैं कि युवाओं में नशे की लत में अब महिलायें भी फंस रही हैं। देहरादून के हुक्काबारों में धुएं के छल्ले उड़ाने में आज युवा अपनी शान समझ रहा है।नशे के भी अपने अलग अलग प्रकार युवाओं में प्रचलित है,किसी को शराब का नशा भाता है तो किसी को सिगरेट के धुएं में खो जाना अच्छा लगता है।आजकल एक नया नशा इन युवाओं में खासा पंसदीदा है पाॅलिथिन में फेफिकौल और सुलोचन इत्यादि भरकर सुंघना,इस नशे की जकड़ में आज का युवा इतना अंधा हो चुका है कि वो अपने भविष्य तक को दांव पर लगाने से नहीं चुकता।दौड़-भाग की जिंदगी में सभी लोग इतने व्यस्त हो चुके हैं कि एक घर में मां बाप को पता ही नहीं चलता कि उनके बच्चे आखिर कर क्या रहे हैं नशा एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसमें से वापस निकलना बेहद मुश्किल है उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी नशे के प्रति भले ही कठोर रुख अपनाया हो परंतु नशा युवाओं के साथ साथ मासूमों को भी जकड़ रहा है और जिला प्रशासन हो या राज्य सरकार इन नशा करने वाले युवाओं और बच्चों को मूकदर्शक की भांति सिर्फ देख रही है।नैनीताल पर्यटन नगरी की ही बात करें तो यहां कि मॉल रोड में हर रोज 18 से 20 बच्चे नशा करते हुए हर रोज दिखाई देते हैं, ये नन्हे बच्चे या तो आपको अंधेरा होने के बाद कबाड़ बिनते नजर आयेगे या फिर भीख मागंते हुये।और मजे की बात ये है कि अगर कोई भला मानस इन बच्चों को खाना खिलाने की बात करे तो ये बच्चे साफ मना कर सिर्फ पैसे मागंते दिखायी देते हैं।इन नन्हे बच्चों की मुठ्ठी में इनकी नशे में सराबोर तकदीर दिखायी देती है जोकि आने वाले दस सालों में इन्हे नशे के लिये कुछ भी करवा देगी तब आज के ये मासूम कल के खतरनाक मुजरिम होंगे।इन बच्चों के परिवार वाले हालांकि बेहद गरीब तबके से हैं और खुद भी नशा करते हैं तो बच्चों को वो क्या सुधारेंगे।इन बच्चो को पुलिस भी ये कहकर अपना पल्ला झाड़ देती है कि इन पर क्या कार्यवाही करें आज इनको पकड़ेंगे तो कल फिर ये यही नशे का काम करेंगे लेकिन जो युवा और जो बच्चे अच्छे और सम्रद्ध परिवार से है वो भी नशे की गिरफ्त मे पूरी तरह से जकड़े हुए है।नामी गिरामी स्कूल काॅलेज के विद्यार्थी नैनीताल की सुनसान जगह पर छिप कर नशा करते हैं इतना ही नहीं नैनीताल के स्कूल काॅलेजों के हाॅस्टल मे भरपूर नशे का सामान मौजूद रहता है,लेकिन न तो इसकी भनक स्कूल और काॅलेज के प्रबन्धन को रहती है और न ही कभी पुलिस प्रशासन ने छापा मारकर सच्चाई सामने लाने की कोशिश की।हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि युवाओं को नशे के लिये कूछ भी मिल जाये चाहे झंडू बाम मिले या ऑयो डैक्स बस ब्रैड मे लगाया और चाय की चुस्की के साथ हो गया नशे का इन्तजाम।कोई समझाने वाला नहीं और न ही खुद का दिमाग इस हालत में है कि अपना अच्छा भला ही समझ सके।नैनीताल में एक भी नशा मुक्ति केंद्र नहीं है और न ही कहीं काॅउन्सिलिंग के लिये कोई अच्छी संस्था जो इन युवाओं को सुधारने मे मदद कर सके।सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि युवाओं को नशे का सामान उपलब्ध कौंन करवाता है आये दिन स्मैक की तस्करी करने वाले नौजवान पुलिस की गिफ्त में आ तो जाते है पर ये तो नशे की दुनिया की सिर्फ छोटी मछलियां हैं बड़े गिरोह तक पुलिस के लम्बे हाथ अभी पहुंचे ही नही है।मां बाप मिल कर कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि अपने बच्चों पर नजर रखे क्या बच्चे खा रहे हैं, उनके बैग में क्या है, कहां जा रहे हैं, अकेले रहने की प्रवृत्ती भी नशे की ही गिरफ्त की ओर इशारा करती है इसलिये ध्यान दें कि आपका बच्चा ज्यादा समय अकेले तो नहीं बिता रहा।पुलिस कुम्भकर्णी नींद से जब जागेगी तब जागेगी लेकिन मां बाप अगर वक्त रहते नहीं जागे तो उनके बच्चे नशे की लत के चलते हमेशा के लिये सो जायेंगे।