बुराँशी को फूल जैसी तेरी मुखड़ी,तकणी बहुत में करूलो यादा


इस दौरान उत्तराखंड की मशहूर गायिका संगीता ढौढियाल ने हाय काकड़ी झिलमा, नुण पीसो सिलमा, मोहना बैठी रेछै मेरो दिलमा, लागी सुवा घुट घुट भटुली लागी, हरिमन दा ने होसिया मेरी पराणी, तकणी बहुत में करूलो या दा, ओ नंदा सुनंदा तू देण है जाये, भाष्कर कुमार ने उत्तरायणी कौतिक लागिरो सरयू का बगड़ मा, त्वले आये मयले उला बागनाथा मन्दिर मा जुला मेरी सरूली ली, ओ मेरी सरु मेरी सरूली के गाने पर लोग झूमने पर मजबूर किया।वहीं बुरांश महोत्सव के इस आयोजन में उत्तराखंड की संस्कृति का लोगो ने जमकर लुत्फ उठाया ।
इस महोत्सव में प्रदेश के लोक कलाकारों के दवारा कुमाऊं और गढ़वाल के पहाड़ की संस्कृति को मंच पर झोड़ा, चाचरी और जौनसारी गानो को के दवारा दर्शाया गया।
वहीं आयोजक नव प्रभाव सोसायटी के अध्यक्ष का कहना है कि पहाड की विलुप्त हो रही संस्कृति को बचाने के लिए इस तरह का आयोजन करना जरूरी है। अपने पहाड़ो की सांस्कृतिक बिरासत को आगे बढाने के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए।
इस महोत्सव में आयी लोक गायिका संगीता ढोडियाल का कहना है की हमारे आने वाली पीढ़ी हमारे उत्तराखंड के कल्चर को इन महोत्सव के माध्यम से हमारी गढ़वाल और कुमाऊ की संस्कृति को पहचानें, ऐसे महोत्सव को प्रदेश की सरकार के दवारा बढ़ावा देना चाहिए।
इस कार्यक्रम में नरेन्द्र शर्मा, तेजस्वर घुगत्याल, सुबोध चमोली, मनमोहन बिष्ट, सुरेश घुगत्याल, मोहन पाठक, चन्दन सिंह विष्ट, यतिन रौतेला, मनोज कुमार, रोहित नेगी, नवीन करगेती, महावीर रावत, मुकेश रावत, नरेंद्र चौहान, आशा बिष्ट, सभी लोग मौजूद रहे।