नैनी झील में उभरा तीर,कहीं प्रकृति का कोई इशारा तो नहीं ।

क्या आज प्रकृति अपना कहर बरपा रही है कोरोना वायरस के ज़रिए ? आज जानवरो से पैदा हुई ये बीमारी इंसानों तक पहुंच गई और अब इसका कोई इलाज भी फिलहाल नज़र नही आ रहा है।कहते हैं एक दिन अति की इति हो जाती है शायद ये वही दिन है जब प्रकृति भी सहते सहते थक गई और अब क्रूर रूप में कोरोना वायरस के ज़रिए अपना बदला ले रही है।लेकिन प्रकृति इंसानों की तरह नही है सिर्फ देना जानती है लेना नही। आज सुबह सुबह प्रकृति के ही द्वारा नैनीताल की प्रसिद्ध झील में एक एक ऐसा नजारा देखने को मिला जो इससे पहले कभी नही देखा गया।कभी कभी हमे एक इशारे भर की ज़रूरत होती है ताकि चीज़ों को हम बेहतर बना सके,कुछ प्रतीक सकारात्मक ऊर्जा बनाये रखने के किये बहुत ज़रूरी होते हैं,और प्रतीकों को तो शायद हर धर्म मे माना जाता है ।नैनी झील में आज सुबह एक तीर की आकृति स्पष्ट रूप में खुद ब खुद उकर गयी,तीर भी ऐसा की मानो नैनीताल की सीमा की ओर कुछ इशारा सा कर रहा हो,जैसे कह रहा हो कि कोई भी महामारी या प्रकोप इस देवनगरी से दूर ही रहना।माँ नयना देवी मंदिर से शुरू होता ये तीर तल्लीताल बस स्टैंड की ओर जाता दिखाई दे रहा था जिसे देखकर नैनीताल के स्थानीय निवासी झील में बने तीर को एक अच्छा संकेत मान रहे हैं।ये झील इतनी शांत कभी ना थी,निर्मल जल, हिचकोले लेती लहरें साल भर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है ,आज सुबह जब मॉल रोड और ठंडी सड़क के ऊपर की पहाड़ियों की प्रतिछाया झील में पड़ी तो एक तीर नुमा आकृति नैनी झील में बनती दिखाई दी ऐसी आकृति हर रोज़ नही बनती,ये तीर शायद आज कोरोना के कहर के बीच एक उम्मीद दिखा रहा है।कोरोना से बचने के लिए दूरियां बनाकर रखनी ज़रूरी है बार बार हाथों को धोना भी ज़रूरी है।झील में उभरा तीर शायद यही इशारा कर रहा है कि कोरोना को पानी से हराया जा सकता है।पानी के रास्ते से ही कोरोना को इस दुनिया से खदेड़ा जा सकता है।
मानने वाले जो भी माने लेकिन हकीकत से कोई मुह नही मोड़ सकता ,पानी के बिना धरती पर जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती,आज कोरोना से बचने के लिए भी पानी वास्तव में अहम योगदान दे रहा है।प्रकृति का ये इशारा आप भी समझिए।