घर आ जा परदेसी उम्मीदवार बुलाये रे।

उत्तराखंड में यूं तो सालभर में कई त्यौहार मनाये जाते हैं,और इन त्यौहारों पर परदेश में रहने वाले लोग अपने गाँव व जन्मभूमि की तरफ रूख भी करते हैं।इस वर्ष दशहरा, दीपावली त्यौहार के बीच लोकतंत्र का त्यौहार पंचायत चुनाव भी पड़ रहा है।प्रत्येक पांच वर्ष बाद आने वाले ग्राम पंचायत चुनाव भी हमें एक पर्व समान ही महसूस होते हैं, हमारी ग्रामीण पृष्ठभूमि और चुनावी मूड दोनों ही बातें हमें इसके लिए उत्साहित करती हैं।जिस कारण ये चुनाव एक त्यौहार का रूप लेता है,और इसको अनोखे अंदाज में अंजाम दिया जाता है।इस वक्त गांव से बाहर शहरों में रह रहे लोगों के मन में भी अपने-अपने गांव के प्रति प्यार उमड़ने लगता है।गांव खाली पड़े हैं जिस कारण गांव के चुनाव की रणनीतियां भी शहर में बनने लगी हैं, कुछ वर्षों से इसमें ज्यादा प्रगति हुई जबसे सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्म प्रत्येक व्यक्ति उपयोग करने लगा,लोग अपने प्रिय-जनों की खोज खबर में लग जाते हैं और नयी रणनीतियां बनती दिखाई देती हैं।कई तरह की रिश्तेदारियां नातेदारियाँ बनती बिगड़ती हैं,भाईचारा बनने बिगड़ने का खेल शुरू हो जाता है,और अपनी अपनी जात बिरादरियां एकतित्र होकर अपनी ताकत दिखाती हैं।

उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्र इस समय पूरी तरह चुनावी मोड़ में आ चुके हैं,बिजली,पानी,जंगल, गांव में सड़क, वृद्धावस्था पेंशन जैसे मुद्दों के साथ उम्मीदवार वोटरों को अपने-अपने पक्ष में करने में जुट गए हैं।बदलते समय के साथ चुनाव प्रचार करने का तरीका भी बदला है,अब उम्मीदवार घर-घर जाकर वोट मांगने के साथ ही सोशल मीडिया के सहारे भी अपना प्रचार कर रहे हैं।

इस बार पंचायत चुनावों में कुछ बदले नियमों के बाद युवा व शिक्षित उम्मीदवारों की अधिकता देखी जा रही है,गांव छोड़कर शहर जा चुके कुछ लोग भी वापस गांव आकर चुनाव लड़कर अपनी राजनीतिक पारी शुरू करना चाह रहे हैं।आज गांवों से बड़ी संख्या में युवा नौकरी के लिए शहरों की तरफ रुख कर चुके हैं,गांव खाली पड़े हैं।महिला आरक्षण व जातिगत आरक्षण तय होने के बाद कुछ सीटों पर उम्मीदवारों की तलाश शहर से उम्मीदवार को गांव बुलाकर हुई है,जबकि कुछ महिला आरक्षित सीटों पर प्रधान पति एक्टिव हैं।गांव की वोटर लिस्ट में नाम होने वाले युवाओं के पास गांवों से उम्मीदवारों के फोन पहुंचने भी शुरू हो चुके हैं, युवाओं को गाड़ी भेजने व आने-जाने का किराया देने जैसे प्रलोभन भी दिए जा रहे हैं।हालांकि शहर में रह रहे कुछ युवा भी अपने-अपने उम्मीदवारों का सोशल मीडिया के जरिए खुलकर समर्थन कर रहे हैं।गांव में रहकर लंबे समय से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे उम्मीदवार एक तरफ शहर से युवाओं को बुलाकर उनका वोट पाने की उम्मीद कर रहे हैं,तो दूसरी तरफ शहर से गांव वापस आकर चुनावी ताल ठोक रहे उम्मीदवारों का बाहर रहने को चुनावी मुद्दा बना रहे हैं।पंचायत चुनाव के इस पर्व में हिस्सा लेने शहर में रह रहे लोग यदि वोट देने के लिए गांव पहुंचते हैं,तो सूने पड़े गांवों में एक दिन के लिए रौनक जरूर होगी और यह चुनाव अपने आप त्यौहार के रूप में बदल जायेगा।साथ ही शहर में रहनेे वाला व्यक्ति भी यदि अपने गांव की सेवा करना चाह रहा है तो वह भी गांव के हित में ही होगा।