गंगा में खनन पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने रखी शर्त

उत्तराखंड के हरिद्वार क्षेत्र में गंगा और उसकी सहायक नदियों में रेत- बजरी व बोल्डर के खनन और चुगान को लेकर मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में चल रहे मामले का निस्तारण होने के बाद अब पर्यावरणीय स्वीकृत जारी करने को नयी शर्त जोड़ दी है। एमओईएफ ने गंगा व उसकी सहायक नदियों में उपखनिज की उपलब्धता को लेकर उत्तराखंड वन विकास निगम द्वारा लगाई गई एफआरआई की अध्ययन रिपोर्ट में यह बताने को कहा है कि वहां से कितना उपखनिज निकाला जा सकता है। एफआरआई ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला करार दिया है। इससे वन विकास निगम पसोपेश में है। उत्तराखंड वन विकास निगम को हरिद्वार में गंगा नदी में भोगपुर, बिशनपुर, श्यामपुर व चिड़ियापुर और गंगा की सहायक नदी रवासन में प्रथम व द्वितीय के साथ ही कोटावली नदी में उपखनिज चुगान के लिए सात लॉट की लीज स्वीकृत मिली हुई है। 2017 में वहां से करीब 3.34 लाख घन मीटर रेत बजरी व बोल्डर का चुगान किया गया था। बाद में इसे लेकर विरोध हुआ और मसला एनजीटी पहुंचा । पिछले वर्ष फरवरी में एनजीटी के आदेश पर उपखनिज चुगान का कार्य रोक दिया गया था।
हालांकि इस मामले में निगम ने अभी तक उम्मीद नहीं छोड़ी है। निगम के प्रबंध विदेशक मोनीष मल्लिक के अनुसार एमओईएफ की नई शर्त के मद्देनजर एफआरआई से आग्रह किया जा रहा है। उन्होनें बताया कि जल्द ही वह इस बारे में एफआरआई के निदेशक से भी मुलाकात करेगें।