उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रो में उग आये काफल लोककथाओं में भी प्रचलित है काफल का फल

उत्तराखंड के पहाड़ी और ऊंचाई वाले क्षेत्रो में गर्मी के मौसम में हर साल उगने वाला फल काफल इस साल भी हरे भरे काफल के पेड़ो में उग आये हैं ये फल पहाड़ी क्षेत्रो के सुंदरता में चार चाँद तो लगा ही रहा है साथ ही लोग भी इस फल को खाने के लिए काफी बेताब नजर आते हैं फल खाने में मीठा होता है जो की ये फल 4000 से 6000 फ़ीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रो में मार्च माह में काफल के पेड़ में उग आते हैं लेकिन इस वक्त ये फल हरा और खट्टा होता है लेकिन एक माह बीते जाने के बाद ये फल लाल हो जाता है जिसका स्वाद भी मीठा होता है इस फल का वैज्ञानिक नाम “मिरिका एस्कुलेंटा” है जिसे भूख बढ़ाने के औषधि के तौर पर भी लिया जाता है उत्तराखण्ड राज्य के साथ ही ये स्वादिष्ट और फल नेपाल और हिमांचल में भी पाया जाता है काफल फल के पौधे को कही भी उगाया नहीं जा सकता हैं यह स्वयं उगने वाला पौधा है जो की 4000 फ़ीट से 6000 फ़ीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रो में खुद ही उग जाता है काफल पर लोककथाएं भी काफी प्रचलित है बड़े बुजुर्गो की माने तो एक लोककथा के अनुसार एक छोटी सी पहाडी पर एक घना जंगल हुआ करता था जहाँ पहाडी के पास गांव में एक औरत अपनी बेटी के साथ रहती थी ये महिला काफी गरीब थी जो कि कड़ी धूप से लेकर बारिश या सर्दी जैसे मौसम में भी काफी मेहनत अपनी आर्थिकी को चलाने के लिए किया करती थी एक दिन महिला जंगल से रसीले काफल के फल टोकरी में तोडकर लाई और उसने काफलों से भरी टोकरी अपने बेटीे को सौंपी और कहा कि वो उसकी देख रेख करे ये कहकर महिला स्वयं जंगल में मवेशी के लिए चारा अर्जित करने चली गई वहीँ काफल की देखरेख कर रही बिटिया का मन काफल खाने को भी ललचाया, लेकिन अपनी मां की बात सुनकर उसने एक भी दाना काफल का नहीं खाया काफल के कड़ी धूप में देखरेख कर रही बिटिया इसकी हिफाजत करते करते भूखे पेट ही सो गई वहीँ कड़ी धूप में टोकरी में रखे काफल काफी हद तक सूख भी चुके थे तो इनकी इनकी संख्या भी टोकरी में काफी कम लगने लगी थी अब शाम को चुकी थी तो महिला जंगल से चारा इकट्ठा कर वापस लौटी घर पहुंची तो उसने देखा की की काफल काफी कम हो गया महिला ने सोचा की उसकी बिटिया ने ही काफल टोकरी में से निकालकर खाये होंगे थी गुस्से में महिला ने घास का गट्ठर एक ओर फेंका और अपने हाथों से अपनी बेटी के सर में जोरदार प्रहार किया बेटी जिस प्रकार सोई थी उस प्रकार ही वह शांत रही बेटी के द्वारा कोई हलचल ना करने पर बेटी की मां ने घबरा कर जोर-जोर से बेटी को हिलाया लेकिन बेटी ने तो उस समय ही दम तोड़ दिया था ! कुछ देर बाद शाम होने पर काफल की टोकरी दोबारा से फिर उसी तरह लबालब भर गयी तब जाकर महिला ने सोचा यह काफल तो धूप के कारण सूख गए थे महिला को इसका काफी अफ़सोस हुवा और इस गम में मां ने भी दम तोड़ दिया कहते हैं कि वो बच्ची आज भी एक पक्षी बन कर अमर है। ये पक्षी आज भी झुंडों में घुमते हैं। और आवाज़ लगाते हैं...... और गढ़वाली में एक पंक्ति दोहराते हैं "काफल पाको, मैल नि चाखो"
अर्थात काफल का फल पका, लेकिन मैंने उसे नहीं चखा
और मां के रूप में एक पक्षी यह बोलती है "पुर पुतई पुरै पुर " अर्थात् पूरे हैं बेटी पूरे है़ इस फल को इंद्रलोक का फल भी माना जाता है कुमाउनी बोली के लोक गीत में काफल अपना दर्द बयाँ करते हुए कहते है “खाण लायक इंद्र का हम छी भूलोक आप पण" अर्थात हम स्वर्ग लोक में इंद्रा देवता के खाने योग्य थे और अब भू लोक में आ गए” |