अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर पेंटिंग के माध्यम से महिला संघर्ष को दर्शाया गया।

रामनगर - अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर ढेला के सामुदायिक भवन में महिला सम्मान कार्यक्रम का आयोजन किया गया, कार्यक्रम में उपस्थित महिलाओं को महिलाओं के जीवन संघर्ष पर फिल्में दिखाने के साथ- साथ उनके रोजमर्रा के कामकाज को चित्रों के माध्यम से दीवारों पर उकेरा गया। उपस्थित महिलाओं को प्रिंटेड रेनबो एवं उत्तराखण्ड की प्रख्यात लोक गायिका कबूतरी देवी के जीवन पर बनी फिल्म दिखाई गई। गीतांजलि राव निर्देशित प्रिंटेड रेनबो में महिलाओं के जीवन के यथार्थ एवं उनके सपनों को बहुत ही बेहतरीन तरीके से सामने लाती है। उपस्थित महिलाओं द्वारा अपने जीवन के संघर्ष को उकेरते चित्र जंगल से लकड़ी लाती महिला, पानी लाती महिला, धान की रोपाई करती महिलाओं के दीवार चित्र भी बनाये गए।


इस दौरान महिला दिवस के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए नवेन्दु मठपाल ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस एक मजदूर आंदोलन से उपजा है, इसका बीजारोपण साल 1908 में हुआ था जब 15 हजार औरतों ने न्यूयॉर्क शहर में मार्च निकालकर नौकरी में कम घंटों की मांग की थी। इसके अलावा उनकी मांग थी कि उन्हें बेहतर वेतन दिया जाए और मतदान करने का अधिकार भी दिया जाए। एक साल बाद सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमरीका ने इस दिन को पहला राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित कर दिया।1917 में युद्ध के दौरान रूस की महिलाओं ने श्ब्रेड एंड पीसश् (यानी खाना और शांति) की मांग की, महिलाओं की हड़ताल ने वहां के सम्राट निकोलस को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया और अंतरिम सरकार ने महिलाओं को मतदान का अधिकार दे दिया. उस समय रूस में जूलियन कैलेंडर का प्रयोग होता था. जिस दिन महिलाओं ने यह हड़ताल शुरू की थी वो तारीख 23 फरवरी थी. ग्रेगेरियन कैलेंडर में यह दिन 8 मार्च था और उसी के बाद से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाने लगा। इसे अंतरराष्ट्रीय बनाने का आइडिया आया क्लारा जेटकिन ने दिया। 1910 में कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं की एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के दौरान अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का सुझाव दिया. उस वक्त कॉन्फ्रेंस में 17 देशों की 100 महिलाएं मौजूद थीं. उन सभी ने इस सुझाव का समर्थन किया. सबसे पहले साल 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था. लेकिन तकनीकी तौर पर इस साल हम 109वां अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं। 1975 में महिला दिवस को आधिकारिक मान्यता उस वक्त दी गई थी जब संयुक्त राष्ट्र ने इसे वार्षिक तौर पर एक थीम के साथ मनाना शुरू किया. पारुल अधिकारी ने महिलाओं की वर्तमान स्थिति पर बातचीत करते हुए कहा कि आज भी महिलाओं की बेहतर जिंदगी की लड़ाई जारी है। यहां तक कि सेना में सर्वोच्च पद हेतु न्यायालय के निर्णयों के बाद महिलाओं को न्याय मिल रहा है। महिलाओं पर हमले बढ़ते ही जा रहे हैं। कार्यक्रम में पुष्पा करगेती, विमला देवी, चंद्रा रावत, भोजनमाता हंसी रावत, नन्दी बिष्ट, मंजू करगेती, विमला नेगी, तुलसी सत्यवली, उमा सत्यवली, यशोदा देवी, हेमा देवी, नेचर गाइड राजेश भट्ट, ख्यालीदत्त करगेती, पारुल अधिकारी, दीक्षा करगेती, इरशाद मौजूद रहे।