शर्मनाक:त्रिवेंद्र सरकार में दोषियों के खिलाफ नही बल्कि पीड़ित मरीजों पर होते है मुकदमें?

उल्टा चोर कोतवाल को डाँठे ये कहावत सुशीला तिवारी अस्पताल और त्रिवेंद्र सरकार पर सटीक बैठती है। किसी एक की गलती पर सरकार अपना पक्षपाती डंडा चलाना खूब जानती है लेकिन अगर गलती खुद से हो तो उस पर और ज़्यादा अच्छे से पर्दा डालना भी बख़ूबी जानती है।सुशीला तिवारी अस्पताल में बदहाली,लापरवाही, और अव्यवस्थाओं की खबरें रोज़ अखबारों में छप रही है मरीजो की आपबीती सुनकर ही रूह कांप जाती है लेकिन त्रिवेंद्र सरकार के पास इन सब लापरवाही की कोई सजा नही है , उल्टा जिस किसी ने भी अस्पताल की इन लापरवाही को भुगता, त्रिवेंद्र सरकार की पुलिस ने उन्ही पर धारा 188,269,270,51 डी के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया । स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर नाकाम होती सरकार का क्या यही न्याय है?


कोरोना संक्रमित मरीजो को डिस्चार्ज करने के बाद भी उन्हें ज़बरदस्ती क्वारंटाइन सेंटर भेजा जा रहा था ।

मरीजों के बेड की चादरें तक नही बदली जा रही थी ।

खाने में फंगस लगी ब्रेड दी गयी।

कोरोना के इलाज के नाम पर ब्रेड के साथ बेकार डालडा घी जैसा मक्खन दिया गया ।

बासी जली रोटी कोरोना मरीजो को दी गयी,बाथरूम की हालत ऐसी थी कि देखते ही उल्टी हो जाये, नहाने के लिए बाल्टी तक नही थी ।

शिकायतों के बाद कही जाकर बाल्टी रखी गयी,कोरोना मरीजो के बीच मे आधी रात को विक्षिप्त महिला को लाकर भर्ती कर दिया गया ।

जिसने रात भर बाकी मरीजो को सोने तक नही दिया,और शिकायत करने पर अस्पताल वालों ने मरीजो को कहा कि कोई पागल बच्चा अगर क्लास में होगा तो क्या उसे नही बैठाओगे ।

गर्भवती कोरोना पॉजिटिव महिला रात भर सड़क पर एक पर्चा बनवाने के लिए बैठी रही,साढ़े सात घण्टे बाद उसका पर्चा बना तब अगली सुबह उस महिला को भर्ती किया गया ।

9 माह की गर्भवती महिला की देर से ऑक्सीजन मिलने की वजह से मौत हो गयी ऐसी ही ना जाने कितनी बड़ी बड़ी लापरवाही सुशीला तिवारी अस्पताल में आये दिन देखने को मिलती है लेकिन जिला प्रशासन ज़्यादातर मामलों में यही कह कर पल्ला झाड़ लेता है कि मामला संज्ञान में नही था,जांच बैठाई जाएगी।

जिला प्रशासन या सरकार क्या ये बता सकती है कि इन सभी लापरवाही की वीडियो,फ़ोटो सब कुछ होने के बाद भी आप कहते है कि जांच बैठाई जाएगी लेकिन डिस्चार्ज हुए उन मरीजो पर आप तुरंत मुकदमा दर्ज करवा देते है जो आपके इस जहन्नुम बन चुके अस्पताल में 10 से 15 दिन किसी कैदी की तरह तड़पते हुए काटते हैं और जब आज़ादी का वक्त आता है यानी जब वो कोरोना नेगेटिव आते है तब उन्हें फिर दूसरी जेल यानी क्वारंटाइन सेंटर भेज दिया जाता है जबकि डिस्चार्ज स्लिप पर आपका अस्पताल 3 दिन के होम क्वारंटाइन को लिखता है और किसी किसी  डिस्चार्ज स्लिप में होम क्वारंटाइन भी लिखा नही होता ऐसी नाइंसाफ़ी क्यो सरकार?ये हाल तब है जब उत्तराखंड का स्वास्थ्य विभाग स्वयं सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के हाथों में है।


 



ये लोग सिर्फ कोरोना मरीज ही थे इनका कसूर क्या था जनाब जो इन्हें किसी मोस्ट वांटेड अपराधी की तरह आप सजा देने लग गए,कोरोना से ना सिर्फ इंसान शारिरिक रूप से बीमार होता है बल्कि मानसिक रूप से भी टूट जाता है अस्पताल वालों की तरफ़ से नरमी और हमदर्दी दिखाने की जगह मरीजो के साथ बदतमीजी की जा रही है।आपने अस्पताल में हो रही लापरवाही, बदहाली,अव्यवस्था पर किसे सजा दी? किसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया? सिर्फ जांच बैठाई जाएगी कह कर आप पल्ला नही झाड़ सकते,रात को डिस्चार्ज किये हुए मरीजो को क्वारंटाइन सेंटर भेजने का क्या औचित्य था? अगर वो ठीक नही हुए थे तो उन्हें डिस्चार्ज क्यो किया गया,और जब वो ठीक हो ही गए तो उन्हें घर क्यो नही जाने दिया जा रहा है इसका जवाब सरकार दे।