पौलिथीन मुक्त भारत ! संदेश के लिए संवेदना भूली सरकार

जैसा कि कुछ दिन पूर्व आवाज़ उत्तराखंड ने बता दिया था कि उत्तराखंड स्थापना सप्ताह मनाने के निर्णय के पीछे कुछ अलग तरह की ही कवायद चल रही है जिसकी कलाई अब खुलती नज़र आ रही है ,हम बात कर रहे है त्रिवेन्द्र सरकार के उस निर्णय की जिसकी वजह से नियम क़ानूनों को दर किनार कर 5000 बच्चों को घंटों तक लाइन मे खड़ा कर दिया जिससे कारण बच्चो और उनके अभिभावकों में काफी रोष है उनका कहना है कि बच्चो को खड़ा करने के लिए किसी भी तरह कि कोई आज्ञा अभिभावकों या स्कूलों से नहीं मांगी गयी थी I

मंगलवार को सुबह 9 बजे से मानव श्रंखला बनाने के लिए शामिल 5000 बच्चे पहले तो घंटों लाइन में खड़े रहे और फिर जोखिम भरे ट्रैफिक मे कई किलोमीटर तक पैदल चले जहां  कई बार उन्हे ट्रैफ़िक को क्रॉस भी करना पड़ा जबकि देहरादून शहर को नो ट्रैफ़िक ज़ोन घोषित पहले ही कर दिया गया था ,यह बात जब बाल संरक्षण आयोग को पता चली तो आयोग की अध्यक्ष उषा नेगी ने कहा कि पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाना एक अच्छी कोशिश है लेकिन इसके लिए बेहतर तरीको का इस्तेमाल होना चाहिए ,बच्चों को सड़क पर उतारने की जरूरत ही नहीं पड़नी चाहिए खैर इस कवायद में सरकार ने पर्यावरण के प्रति जागरूक किया हो या न किया हो लेकिन सरकार संवेदनहीन है ये जरूर बता दिया है लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स मे नाम दर्ज़ करवाने के फेर में सरकार ने आज देहारादून के बच्चों को लाइन हाजिर करवा दिया, हो सकता है भविष्य में समूचे उत्तराखंड के बच्चो को सरकारी फरमान के चलते गिनीज़ बुक ऑफ रिकार्ड्स के लिए सड़क पर न उतरना पड़े ।

सिंगल यूज़ प्लास्टिक के प्रति जन जागरूकता अभियान वैसा ही है जैसा मदिरापान, धूम्रपान आदि के प्रति जागरूकता अभियान ! एक तरफ तो सरकारें मदिरा की दुकानों को आवंटित करती जाती है ताकि राज्य को आय प्राप्त हो सके वही कुछ पैसों के लालच में भारतीय प्रिंट मीडिया धड़ल्ले से प्रथम पृष्ठ पर गुटखा का विज्ञापन छापते है, न्यूज़ चैनल भी कहा पीछे रहने वाले है वो भी मदिरा के विज्ञापन को मैजिक मूवमेंट सोडा के नाम पर चलाते है, और फिर नशाखोरी को रोकने के लिए सरकार विज्ञापन भी देती है और अनेक माध्यमों से समझती है की नशाखोरी से नुकसान होता है

लेकिन ये पब्लिक है सब जानती है कि राज्य की आय के कई स्रोत होते है जिनमें से ये एक है और ये सब एक श्रंखला से जुड़े होते है जिसमें हर स्तर पर पैसे की बंदरबाट होती है, लेकिन जागरूकता अभियान चलना भी जरूरी है क्योंकि कोई पूछेगा कि नशे ,धूम्रपान आदि को रोकने के लिए क्या किया तो कहने के लिए कुछ तो चाहिए ?

और इसी तरह सिंगल यूज़ प्लास्टिक जिनकी फैक्ट्री बंद करने की बात हो रही थी जो कुछ वर्षों के लिए जो अब कचरे के डब्बे मे चली गयी है अच्छा होता सरकार इन सब जागरुता अभियानों को करने के साथ साथ इसका उत्पादन भी बंद करवाती ,तो न उत्पादन होता और न ही प्लास्टिक उपयोग होता और न ही जागरूकता के नाम पर पब्लिक का पैसा बर्बाद होता I