पंचायत चुनावों से गायब होते असल मुद्दे।

उत्तराखण्ड़ में पंचायत चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के लिए प्रचार का शोरगुल आज शाम 5 बजे थम जायेगा।दूसरे चरण में 31 विकासखण्ड़ों में मतदान होना है।ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों पंचायत चुनाव के इस महापर्व की सरगर्मी जोरों पर है,राजनीति का प्रथम सीढ़ी पार करने के लिए हर कोई प्रत्याशी अपनी बातों से मतदाताओं को रिझाने का काम कर रहा है।ग्राम प्रधान,क्षेत्र पंचायत सदस्य,जिला पंचायत सदस्य के प्रत्याशी अपने-अपने अंदाज में ग्रामीणों को रिझाने का प्रयास कर रहें हैं। प्रत्याशियों की जुबां पर गांव में सड़क,बिजली,पानी की समस्या जैसे मुद्दे तो हैं, लेकिन गांवों में इन सुविधाओं के न होने से जो पलायन की समस्या उत्पन्न हुई वह मुद्दा इन चुनावों में पूरी तरह से गायब है।आज भी अधिकाश गांवों में पानी, बिजली, सड़क जैसी मलभूत समस्या जस की तस बनी हुई है,अधिकांश गांवों में सड़क की सुविधा नहीं होने से मरीजों को लाने के लिए डोली का प्रयोग किया जाता है,पलायन से गांव खाली हो जाने के कारण इस डोली को उठाने के लिए चार युवक भी नहीं मिल पाते हैं,यह काम भी नेपाली मजदूरों के भरोसे हो पाता है।ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य केन्द्र मात्र रैफर सैंटर बन कर रह गए हैं,लेकिन दुख की बात है कि पंचायत चुनावों में इन स्वास्थ्य केन्द्रों को लेकर भी कोई चर्चा नहीं है।
राज्य गठन के 19 वर्ष बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों के हालात जस के तस बने हुए हैं,ग्रामीण मतदाताओं का कहना है कि पांच वर्ष में चुनाव के दौरान ही मतदातओं को पूछा जाता है उसके बाद कोई समस्या सुनने तक नही पहुंचता है।पंचायतों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देने केे बाद भी महिलाएं रबर स्टैम्प बनकर रह गई हैं।पंचायत चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों द्वारा अपना-अपना परचम लहराने की बात कही जा रही है,लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी हालात ऐसे हैं कि अधिकाश गांव विकास के लिए छटपटा रहे हैं।
प्रदीप महरा की रिपोर्ट बेरीनाग पिथौरागढ़