नैनीताल:विलुप्त हो रही कुमाऊँनी संस्कृति को बचाने के लिए इस युवती ने छेड़ी है मुहिम

कुमाऊ की संस्कृति को बचाने के लिए नैनीताल की दीप्ति भट्ट ने मुहिम छेड़ी है उन्होंने लॉकडाउन के दौरान घर की दीवारों, चाय की केतली, तौली, लालटेन व शादी के गढ़वो आदि बर्तनो पर कुमाऊँ की संस्कृति को उकेर कर संदेश दिया है कि पश्चिमी संस्कृति को छोड़कर हमारी कुमाऊँनी संस्कृति को अपना जाए । गावों से शहर बनते हम सबने देखा निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर गाँव शहरों में तब्दील होने के साथ ही हम अपनी संस्कृति को निरंतर भूले जा रहे है, एक समय ऐसा था जब उत्तराखंड के कुमाऊनी कल्चर को देखने के लिए देश-विदेश से लोग यहां आते थे पर आज कुमाऊ के लोग अपनी संस्कृति को छोड़कर पश्चिमी संस्कृति अपनाने लगे है, नैनीताल की रहने वाली दीप्ति लॉकडाउन का पालन करने के साथ साथ कुमाऊँ की विलुप्त होती संस्कृति को पहचान दिलाने और लुप्त होती संस्कृति को बचाने की पहल कर रही है। कोरोना काल समय व्यतीत करने के लिये दीप्ति ने 80 के दशक में घरों में उपयोग होने वाले बेकार पड़े बर्तनों पर उत्तराखंड की संस्कृति को उकेरने में लगी है।
लॉक डाउन के समय को घर मे रहकर साफ सफाई करते समय उन्हें 80 के दशक में प्रयोग किए जाने वाले पुराने बर्तन मिले जिन्हें देखते ही उन्हें अपने बचपन के दिन याद आ गए। बस इन्हें देखकर दीप्ति ने घरों के दरवाजों व खिड़कियों की लकड़ियों और पुराने बर्तनो में लुप्त होती संस्कृति को दर्शाने की कोशिश में जुट गई, दीप्ति ने अपने ड्रॉइंग रूम को कुछ इस तरीके से सजाया जिसे देखकर पुराने समय की याद ताजा हो जाती है चाहे वह मामा की चाय बनाने की केतली हो या फिर भात दाल बनाने का तौल । दीप्ति कहती है उन्होने फेस बुक पेज के माध्यम से उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने के साथ ही देश और विदेशों में पहचान मिल सके। जिस तरह से पश्चिमी संस्कृति आने के बाद युवा पुरानी परम्परा को भूलते जा रहे है उसे बचाने का प्रयास कर रही है। नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति के प्रति सजग रहने का संदेश भी दिया है ताकि आने वाली पीढ़ी भी अपनी संस्कृति को जाने और समझ सके।