गढ़वाली बोली के संरक्षण पर विशेष कदम सरकारी और गैर सरकारी प्राथमिक स्कूलो में गढ़वाली पाठ्यक्रम हुवा लागू

उत्तराखण्ड के सरकारी और गैर सरकारी प्राथमिक विद्यालयो में गढ़वाली बोली को अलग पहचान दिलाने के लिए गढ़वाली पाठ्यक्रम की शुरुवात आज पौड़ी से हो गई है पौड़ी ब्लाक से शुरू हुई इस पहल को जिलाधिकारी ने हरी झण्डी दिखाकर पुस्तक का वितरण आज पौड़ी ब्लाक के सभी अध्यापको को किया साथ ही एक कार्यशाला आयोजित कर गढ़वाली के महत्व को समझाया गया| हालांकि सोमवार यानी 22 जुलाई से अध्यापक पाठयक्रम की शिक्षा छात्र छात्राओं को देना शुरू करेंगे, कक्षा 1 से 5 वीं तक इस पाठ्यक्रम की अनिवार्यता में छात्र छात्राएं गढवाली बोली के महत्व को तो समझेंगे ही साथ ही हर कक्षा के लिए अलग-अलग पाठक्रमों की पुस्तकों के नाम धगुलि छुबकि पैजबि झुमकि हैं, जो की पहाड़ के आभूषण हैं और विलुप्ति की कगार पर हैं| इनका नाम पुस्तकों को दिया गया है, पाठ्यक्रम लागू होने के बाद गढ़वाली बोलने में भी छात्र कतई नहीं हिचकेंगे और हिंदी अंग्रेजी की तरह ही इस पाठ्यक्रम रूचि भी लेकर गर्व से गढ़वाली बोलेंगे, पाठ्यपुस्तको में एक ख़ास बात ये भी है की इन सभी पुस्तको में एक एक पाठ उत्तराखण्ड की उन सख्सियतो के नाम हैं जिनके कार्य और बलिदान को आज भी याद किया जाता है टिहरी में जन्मे श्रीदेव सुमन के साथ ही पौड़ी जनपद में जन्मे पेशावर कांड के नायक वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली और चमोली जनपद में जन्मी चिपको आंदोलन की शुरुवात करने वाली वीर नारी गौरा देवी का उल्लेख भी किया गया है| जिसने वनों की अहमियत को समझकर इन्हें काटने से बचाने के लिए एक आंदोलन की शुरुवात की थी| इसके साथ ही पहाड़ की वीर महिला तीलू रौतेली की बहादुरी के किस्से भी गढ़वाली बोली में छात्र - छात्राएं समझेंगे| इस पाठयक्रम को सरकारी स्कूलों में घटती छात्र संख्या पर नियंत्रण पाने में भी कारगर सिद्ध होगी| वहीं पश्चिमी सभ्यता को भूलते हुए गढ़वाल की संस्कृति का बोल-बाला जल्द ही राज्य में होगा फिलहाल पाठ्यक्रम की शुरुवात पौड़ी से हुई है।