ग्रीष्मकाल के लिए खुले भगवान बद्रीविशाल के कपाट

बदरीनाथ धाम के कपाट ब्रह्म मुहूर्त में तड़के 4 बजकर 30मिनट पर पूरे विधि-विधान के साथ ग्रीष्मकाल के लिए खोल दिए गए हैं। धाम में पहली पूजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से की गई। इस अवसर पर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि चारधामों के कपाट खुल गए हैं। जल्द ही चारधाम यात्रा शुरू होगी।

चमोली जिले में समुद्रतल से 10276 फीट की ऊंचाई पर स्थित भू-वैकुंठ श्री बदरीनाथ धाम के कपाट शुक्रवार को ज्येष्ठ माह, कृष्ण अष्टमी तिथि, कुंभ राशि धनिष्ठा नक्षत्र, ऐंद्रधाता योग के शुभ मुहूर्त पर खोले गए। कोरोनाकाल के चलते इस अवसर पर सीमित लोग ही उपस्थिति रहे। साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन हुआ और मास्क पहने गए। हालांकि इस बार सेना के बैंड की मधुर ध्वनि, भक्तों का हुजूम, भजन मंडलियों की स्वर लहरियां बदरीनाथ धाम में नहीं सुनाई दी।

इस यात्रा वर्ष कोरोना महामारी के कहर का प्रभाव उत्तराखंड के चार धामों पर भी पड़ा है। बदरीपुरी में आश्रम, दुकानें, छोटे-बड़े होटल, रेस्टोरेंट, ढाबे बंद हैं। कपाट खुलने के बाद वेद मंत्रों की ध्वनियों से बदरीशपुरी गुंजायमान जरूर हुई और मंदिर फूलों की सजावट के साथ बिजली की रोशनी से जगमगा रहा था। इससे पहले 14 मई को आदि गुरू शंकराचार्य की पवित्र गद्दी सहित रावल जी, श्री उद्धव जी, श्री कुबेर जी और गाडूघड़ा (तेलकलश) योग ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर से श्री बदरीनाथ धाम पहुंच गए थे।


इस यात्रा वर्ष कोरोना महामारी को देखते हुए चारधाम यात्रा शुरू नहीं हो सकी है‌। केवल कपाट खोले गए हैं। कपाट खुलने को लेकर देवस्थानम बोर्ड ने तैयारियां पूरी कर ली थी। इसी के तहत प्रात: तीन बजे से श्री बदरीनाथ धाम में कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू हुई। देवस्थानम बोर्ड के अधिकारी सेवादार, हक-हकूकधारी मंदिर परिसर के निकट पहुंच गये। श्री कुबेर जी बामणी गांव से बदरीनाथ मंदिर परिसर में पहुंचे तो रावल और डिमरी हक-हकूकधारी भगवान के सखा उद्धव जी और गाडू घड़ा तेल कलश लेकर द्वार पूजा के लिए पहुंचे। 

वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ द्वार पूजन का कार्यक्रम संपन्न हुआ और फिर ब्रह्म मुहूर्त पर रावल  ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी ने  बदरीनाथ धाम के कपाट खोल दिए। श्री बदरीनाथ मंदिर के कपाट खुलते ही माता लक्ष्मी जी को मंदिर के गर्भ गृह से रावल ने मंदिर परिसर स्थित लक्ष्मी मंदिर में विराजमान किया। श्री उद्धव जी और कुबेर जी बदरीश पंचायत के साथ विराजमान हुए। कपाट खुलने के बाद मंदिर में शीतकाल में ओढे गए घृत कंबल को प्रसाद के रूप में वितरित किया गया। माणा गांव के जरिए तैयार हाथ से बुने गए घृतकंबल को कपाट बंद होने के अवसर पर भगवान बद्रीविशाल को ओढ़ाया जाता है। श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही मानवमात्र के रोग शोक की निवृत्ति, आरोग्यता और विश्व कल्याण की कामना की गई।